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Sunita Shukla

Horror Thriller

4  

Sunita Shukla

Horror Thriller

हैलोवीन की रात

हैलोवीन की रात

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काली अंधेरी रातों की सुन लो दास्तान

आँखें थीं भौंचक और खड़े हुए थे कान।

बड़े भयानक साये दिखते जंगल बियाबान

राहें थी सुनसान, हो भैया राहें थी सुनसान।।


सहमा हुआ मैं चला जा रहा था

महावीर की स्तुति गा रहा था।

ट्रैक्टर की मोटर सा मेरा धड़क रहा था दिल

चमकती बिजली में कहीं कोई जाये न मिल।।

पग-पग जैसे आगे बढ़ता

दिल मेरा बैठा जाता था।

लाल-लाल सी आँखों वाले चेहरे गोल-मटोल

पेड़ों से ऐसे लटक रहे थे मानो हों यम के ढोल।।


जल-बुझ करती नजरें उनकी लगती बड़ी भयानक

पेड़ों की कई टहनियों ने मुझको घेरा तभी अचानक।

साँय-साँस से चलते रुकते वो गर्म हवा के झोंके

एक-एक कदम हुए थे भारी जैसे पैरों को कोई रोके।।

दूर कहीं एक दिया जल रहा और लोग रहे थे नाच

नर्म धुँए का उठता गुबार और बड़ी गर्म थी आँच।

मैंने सारी हिम्मत बाँधी और लिया प्रभु का नाम

अब जो भी आ जाये सामने कर दूँगा काम-तमाम।।

कंधे पर हुई थी कोई दस्तक मैं भी झट से पलटा

मन में ठान लिया अब तो मैं दूगा सबको निपटा।

सामने मेरे जाॅन खड़ा था लेकर मास्क और सींग

पूछ रहा था कैसा लगा मुझे आज की पार्टी का थीम।।

तब जाकर समझ में आयी मुझको सारी बात

भूत-प्रेत न कोई साया ये तो है है हैलोवीन की रात।

ऐसे ही तो सजी हुई हैं सारी गलियाँ, होटल और बाजार

लोग अनोखे शहर अनोखा और बड़े अनोखे इनके त्यौहार।।


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