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Sunita Shukla

Tragedy Inspirational

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Sunita Shukla

Tragedy Inspirational

सृष्टि की मूरत औरत

सृष्टि की मूरत औरत

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एक औरत जिसकी कहानी

सिर्फ इतनी कि

आँचल में दूध और आँखों में पानी

यही सुना था और

यही पढ़ा है काव्यग्रंथों में।


समाज के सभ्य और सुशिक्षित

बुद्धिजीवी वर्ग ने आइना दिखाया है,

शक्ति और सृजन की प्रतीक औरत का

समाज में

वास्तविक स्थान बतलाया है।


जो स्वयं सर्व सिद्धा है

जो स्वयं सृष्टि की मूरत है

जो स्वयं प्राण संचारक है 

जिसमें आक्रोश अंगार विध्वंस का माद्दा है।

वही औरत अबला है, असहाय है

परिवार का आधार होते हुए भी

उसका नहीं कोई अस्तित्व है।


जन्म पिता के घर, पति का परिवार

और फिर पुत्र बुढ़ापे का आधार

जीवन के इन सारे पड़ावों में

कहाँ है वो औरत..!


जो कभी मानवी, वनिता और कान्ता थी

वो जाने कब अबला लाचार और बेचारी हो गई,

अश्रु भरे निरे उदास दृग

कातर दृष्टि लिये

निस्तेज निस्सहाय हो गई।


प्राण विहीन अंतस

पुरुषार्थ का प्रमाण आँचल में लिये

रवायतों का बोझ ढोती,

हर युग हर काल में

अपनी पवित्रता का प्रमाण देती।

वो औरत थक कर रुक सकती है,

कुछ क्षण के लिये।


निढाल कदमों को फिर

रखने का करती है प्रयास वही औरत।

झुक सकती है पर टूट नहीं सकती,

क्योंकि वो प्रतीक है साहस का

आस्था का

और विश्वास का,


टूटी हुई उम्मीदों की आस का

आने वाली नन्ही जान का

और नफरतों से भरी दुनिया में

प्रेम की फुहार का।


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