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Disha Sahu

Tragedy

4.4  

Disha Sahu

Tragedy

एक फरिश्ता

एक फरिश्ता

4 mins
703


मेरा रूप सुंदर मेरे नैन नक्श कातिल 

हैं मुझमे अदाएं हैं मुझमे नज़ारे 

मैं प्रबल तीव्र और बलवान भी 

फिर भी क्यों दुनिया मुझे ठुकराती रही 

हर जगह एक अलग नज़रिये से देखते रहे मुझे 

न कोई दोस्त बनाता न कोई पास आता 


बचपन से न कोई माँ थी न बाप मेरा 

मैं पली बढ़ी कुछ अपने जैसों के बीच थी 

तालियों का शोर यूँ तो मुझे भाता नही 

पर इसके अलावा और कोई हमे अपनाता नही 

हाँ एक किन्नर हूँ हर किन्नर का दर्द समझती हूँ

आखिर मैं भी तो आप लोगो की ही तरह एक दिल रखती हूँ 


जहां समाज ने सिर्फ हमे ठुकराया था

मैंने भगवान से भी बढ़कर एक दोस्त पाया था 

वो मेरी जिंदगी में किसी रोशनी सी आयी थी 

पहले मैं सिर्फ हंसती थी उसके साथ मुस्कुराई थी 

उसने मुझे इंसानियत और हैवानियत का फर्क दिखाया था 


उसने मुझे फिरसे जीना सिखाया था 

आज नही वो मेरे साथ एक हादसे का शिकार हुई 

मैंने जीया है उसके साथ वो किस्सा 

जिससे इंसानियत शर्मसार हुई 

पर उसे भी ये समाज एक गलत नज़र से ही देखता था 

थे हम दोनों समाज से नकारे और एक दूसरे को समझते थे 


मैं एक बस स्टैंड के यहां खड़ी थी

जब मैं उस से पहली बार मिली थी 

वहां से आता जाता हर इंसान हमें

गलत निगाह से घूर रहा था 

मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा था


फिर वो मेरे पास आयी और बोली क्या इस धंधे में नई है क्या 

मैं घबरा कर उससे बोली कैसा धंधा मैं

तो बस रामपुर जाने के लिए गाड़ी का इंतज़ार कर रही हूँ

तो हंस कर बोली यहां शरीफ लोग नही खड़े होते लड़की 

हम समाज की नजर में धब्बा हैं

जा कहीं और जाके खड़ी हो जा 

फिर मैंने उससे कहा क्या तुम भी मेरी तरह किन्नर हो 


तो चोंक कर बोली तू किन्नर है 

मैं हँसी और हंस कर जाने लगी

तो मुझे रोका और बोली 

की अगर कुछ काम न हो तो कुछ देर रुक जा आ मेरे साथ बैठ 

मैंने कहा नही काम तो हम जैसों के पास कुछ खास होता नही 

तो चल तेरे ही साथ बिता लेती हूँ कुछ वक़्त 


ये 16 साल में पहली दफ़ा था 

जब किसी ने मेरी तरफ दोस्ती का हाँथ बढ़ाया था 

मैं अंदर से बहुत खुश थी पर हाँ थोड़ा डर भी लग रहा था 

हम वहीं पास के तालाब पर जा बैठे 

मैंने उससे फिर वही सवाल किया 

क्या तुम भी किन्नर हो ?


मुस्कुरा के बोली नही किन्नर तो नही 

पर ये समाज मुझे भी कहाँ अपनाता है 

वैश्या कहते हैं मुझे

मुझे औरत होने पर कलंक बताता है 

पर मेरी मजबूरी कभी किसी ने नही देखी 

मेरा खुदका बाप मुझे यहां लेकर आया था 


जब मैं महज़ 5 वर्ष की थी 

और छोड़ गया इस समाज में 

जिन्हें समाज ने कोई जगह नही दी 

वो वहीं बैठे घंटो मुझे अपना दर्द सुनाती रही 

और बैठे बैठे मेरा दर्द बाटती रही 


की अचानक 

अचानक हमे किसी के चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दी 

हमने जैसे ही वो आवाज़ सुनी हम

उठ कर उस आवाज़ की तरफ भाग पड़े 

और देखा की कुछ हैवान लगभग 10 साल की

लड़की को दबोचने की कोशिश कर रहे हैं


मैं तो थोड़ा घबरा गयी पर उसने हिम्मत बांधी

मुझसे बोली कहीं छुप जाओ और जैसे ही हम

यहां से जाएं बच्ची को उसके घर पहुंचा देना

और वहां उनके पास गयी

उन लोगों से बोली की कहाँ

इस बेजान शरीर में जान ढूंढते हो 


आओ इस हुस्न को भी ज़रा देख लो 

चलो मेरे साथ

आज मैं तुम लोगों को जन्नत की सैर कराती हूँ

वो हैवान भी नशे में धुत उसकी बातों में आ गए 

छोड़ दिया बच्ची को वहीं और उसके साथ चल दिए 

उनके जाने के बाद मैंने बच्ची की मदद से उसे उसके घर पहुंचाया 


लोगों को दुआएं देने वाली को आज कोई और दुआएं दे रहा था 

लड़की के माँ बाप आज मुझे किन्नर की नज़र से नही

देवी माँ के रूप में देख रहे थे 

ये सब उस अनजान के कारण हुआ था 

बच्ची को घर पहुंचाने के बाद मैं फिर वहीं वापस गयी 


और उसे बहुत खोजा पर वो मुझे नही मिली 

मैं रोज उस बस स्टैंड जाती थी

इस उम्मीद में की मुझे मेरी दोस्त एक बार फिर मिलेगी

पर हर रोज खाली हाँथ ही लौटना पड़ता था 

न उसका नाम पता था न उसके घर का पता था 


हर रोज़ की तरह उस रोज़ भी उसी का इंतज़ार कर रही थी वहां 

की एक उस जैसी ही कमसिन कली दिखी 

और मैं उसके पास जाके पूछ ही बैठी 

की एक रोज़ मुझे यहां एक औरत मिली थी 

क्या तुम जानती हो वो कहाँ है 


उसने बोला यहां तो पहले करिश्मा आया करती थी 

मैंने उसे उसके पास ले जाने कहा

वो मुझे एक कोठे पे ले गयी 

जब मैंने दुबारा उसे देखा

तो वो अपनी जिंदगी के कुछ आखिरी पल गिन रही थी 


एक भयंकर बीमारी का शिकार थी

और मरने की राह तक रही थी

वो मुझे एक बार फिर ऐसे मिलेगी

मैंने ऐसा कभी नही सोचा था 


मैं उस रोज़ से उसके पास रोजाना

जाने लगी और कुछ दिनों में ही वो गुजर गयी 

पर छोड़ गयी मेरे पास कुछ यादें 

कुछ इंसानियत की मिसाल 

वैसे तो मैं इस काबिल नहीं 


पर अगर होती मेरी कोई बेटी 

तो मैं उसे बिल्कुल करिश्मा जैसा बनाती 

कहता होगा समाज उसे रंडी और कुलटा 

पर उस रोज उस बच्ची के लिए जो उसने किया 

शायद उसकी माँ भी न कर पाती !


जिस समाज में हम औरत को देवी मानकर पूजते हैं 

उस समाज में औरत की इज़्ज़त भी नही करते 


मैं खुश हूँ कि मुझे किन्नर बनाया है भगवान ने

अपनाते भले न हो मुझे 

पर मेरी बद्दुआओं से तो हैं डरते !


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