हां हूंँ नाराज...!!
हां हूंँ नाराज...!!
नाराज हूँ....!! उन माता- पिताओं से
जो डाल देते है अपने बच्चों पर
अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का बोझ
नहीं पढ़ पाते उनके मन में चलते
द्वंद्व और दुविधा को,
क्या है जो वो चाहते हैं बनाना
कौन सा रास्ता उनके बच्चों को देता है सुकून
जिस पर चलकर
वो अपने जीवन को और विस्तार दे सके
नहीं पूछते है वो,
बस...बता देते हैं अपना निर्णय
बिना उनके निर्णय को जाने
कह देते है बना है तुमको डॉक्टर और इंजीनियर,
जब चाहते हैं कुछ कहना बच्चे अपने दिल की बात
तब दवा दिया जाता है उमड़ते उनके विचारों को
यह कहकर....
तुम्हें कहां समझ अभी..??
क्या जानते हो तुम अभी कैरियर को लेकर
और फिर वो बच्चे हो जाते हैं खामोश
और चल पढ़ते हैं उस सफर पर
जो उनके माता-पिता उनके बिना पूछे
बहुत पहले चुन कर रख ली थी
मन को हमेशा के लिए मारकर
जुट जाते हैं जो शायद....
आने वाली भावी जीवन में
दौलत के कई रास्ते खोलेगा
पर मन की संतुष्टि
हमेशा के लिए अवरोधक हो जाएगी. ...!!
नाराज हूँ...!!
उन तमाम बच्चों से
जो फ्रस्ट्रेशन में आकर
खो देते हैं अपना जीवन
सफलता और असफलता के बीच
झूलती अपनी आकांक्षाओं में,
भटक जाते हैं अपने रास्ते से
और चुन लेते हैं एक ऐसा रास्ता
जो ले जाता है उनको गुमनामी में,
बना लेते हैं ऐसी आदतों को अपना साथी
जो सिर्फ और सिर्फ देती हैं
नाकामियों से लैस अंधकार...
इन्हीं नाकामियों के चलते
वो खुद को कर देते हैं नशा के सुदूर्प
गांजा, चरस, ड्रग्स और ना जाने
कितने तरह के नशों के पीछे खुद को दौड़ाते
और इन सब के बीच खोने लगते हैं
अपनी एनडीटी अपना इम और अपना पूरा का पूरा व्यक्तित्व,
गुलाम बनकर रह जाते हैं
इन आदतों के
चाह कर भी नहीं बना पाते दूरियां
और फिर यह नशा धीरे-धीरे
उनको अंदर तक कर देता है खोखला
जिस ऊर्जा को लगाना था अपने सर्वज्ञ विकास में
वो उस नशें के अंधकार में जाकर हो जाती है विलीन...!!