नारी सम्मान
नारी सम्मान
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर,
जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर,
कहने भर को वो लगती जीवित थी,
ये क्या हो रहा शायद देख भ्रमित थी,
हर ओर से आवाजें क्लिक क्लिक की आईं,
पूछना चाहा ये कैसी संवेदनहीनता है भाई,
ये सभ्य दिखता समाज है या बन गया कसाई,
किसी की विवशता के लिये सोशल मीडिया सजाई?
बने दुशासन लोग यहॉं सरेआम चीर हरण हो रहा,
हर गली मुहल्ले नुक्कड़ पर अभद्र तमाशा हो रहा ,
कहीं असुरों के पंजों में कोई नारी है चीख रही,.
कहीं बीच चौराहे पर किसी की अस्मिता लुट रही,
कोई अम्ल की बोतल लिये चेहरा किसी का बिगाड़ रहा,
कोई तेज कटार लिये किसी के सीने में उतार रहा ,
कैसा है ये युग आया मानवता जार जार हो रो रही,
मॉं अपनी लाड़ो को देखो बाहर जाने से रोक रही,
खड़ी द्वार जी करता धक लाड़ो अब तक ना लौटी है,
नैनों के कोनों पे ठहरे हैं अश्रु कैसे उनको मॉं रोकी है,
किये बहुत ही प्रेम निवेदन पर उसने अस्वीकार किया,
हुआ पुरूष दंभ जब आहत उसने उस पर वार किया ,
पहले उसको ले पंजों में वह यहॉं वहॉं नोचता रहा ,
फिर अम्ल की बोतल से उसके सर पर फोड़ता रहा,
यहीं ना रूका उसका वहशीपन अग्नि में समर्पित किया,
चीखों से गुंजित धरा गगन किंतु कोई ना मदद किया,
किसी तरह जो बचे प्राण तो जले अधरों से वो मुस्काई,
लाचारी का बना रहे वीडियो कल तेरी भी बारी आई ,
इतने में उड़ गये प्राण पखेरू जीवित से दिवंगत हुई,
मुक्त हुई सारे असहनीय कष्ट से चिरनिद्रा में लीन हुई ,
छोड़ गई वो प्रश्न बहुतेरे उत्तर जिनका कोई दे ना सका,
देख तमाशा बने तमाशबीन क्यूं कोई यह रोक ना सका,
क्या शांत हो गया दंभ तुम्हारा या कोई जुगत लगाओगे,
घर जा कर मॉं बहन बेटी पत्नी से कैसे नजरें मिलाओगे,
कर सकोगे क्या सामना उस आईने में दिखती छवि का,
कैसे मिलाओगे नजरें खुद से धिक्कारेगा हृदय पतित का,
अपने कर्मों से कैसे भागोगे कि कर्म कभी नहीं छोड़ता है,
जैसी करनी वैसी भरनी का मुहावरा सत्य प्रतीत होता है,
मैं भी थी बेटी किसी की जिसका जीवन तुमने छीना है,
खुद की बेटी को कहॉं रखोगे कि देख ये बचपन रोता है ,
मैं देती हूं श्राप तुम्हें कि अब से शापित जीवन ही बीतेगा,
हर इक आहट पर बिटिया को देख तेरा हृदय भी रीतेगा,
ये कैसा प्रेम है जिसमें नष्ट होता एक जीवित जीवन है,
प्रेम के नाम पर किये तमाशा किंतु प्रेम बहुत ही पावन है,
नवरात्रि पर देवी पूजते कन्या भोजन को कन्या चाहिये,
उल्टी गंगा कैसे बह रही लेकिन अपने घर नहीं चाहिये,
कब समझेगा ये समाज वक्त का पहिया गोल गोल घूमता,
क्या पता कल को क्या हो काल का पंजा किसे घसीटता,
सोशल मीडिया का वीडियो बस इक पल की सुर्खी देगा,
छोड़ तमाशा प्राख्यात होने का प्रतिउत्तर अब देना होगा,
बहुत चढ़ चुकी बलि नारी की कृपया यह सब बंद करो,
हर घर में नारी बसती है यह समझ उसका सम्मान करो ,
पौरूष यदि दिखलाना ही है तो अत्याचार के विरूद्ध लड़ो,
हर स्त्री स्वरूप है पूज्यनीय उसमें मॉं बेटी की छवि धरो,
मिट जायेगा नाम धरा से और बेटी होते ही जी घबड़ायेगा,
हर बेटी पूछेगी मॉं से मुझे बचाने कब रावण जैसा भाई आयेगा...!!