Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

5  

ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

क्या दे कर जाएंगे अगली पीढ़ी को

क्या दे कर जाएंगे अगली पीढ़ी को

3 mins
468



बहुत दिन हो गए, कुछ सटीक लिख नहीं पा रहा था,

कई बार उठाई लेखनी हाथों में, पर लिख नहीं पा रहा था।

कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा थाA,

बेबसी सी थी मन में, परेशान भी था, कुछ कुछ घुट रहा था।

 

साहस कर फिर लेखनी उठाई, मन हुआ कुछ अच्छा लिखूँ,

संसार को आज कुछ अपने अलग एक नज़रिये से ही देखूँ।

संस्कारों पर लिखूँ, सद्भाव, सदाचार, सदगुणों पर लिखूँ,

पर कहीं नज़र न आए ये कुछ, समझ न आया क्या लिखूँ।

 

चारों तरफ फैले थे दुर्भाव, दुराचार, अस्मिता के होते बलात्कार,

फैल रहा था अहम् भाव, एक दूजे के प्रति मन में प्रतिकार।

जब भी कुछ लिखने बैठता, सुनता धर्म के नाम पर दुष्प्रचार,

जाने किस दिशा को जा रहा था, लोगों का आपस में सामाजिक व्यवहार।

 

इन सब बातों पर कितना लिखूँ, जाता समाज को एक गलत सन्देश,

सोचता हूँ कभी कभी, क्या दे कर जाएंगे अगली पीढ़ी को, क्या रहेगा अवशेष?

बस विषय मिल गया मुझे आज, “क्या देकर जाएंगे अगली पीढ़ी को”?

बहुत दुःख होता है मुझे, जब देखता हूँ तिल तिल मरती हुई संस्कृति को।

 

पूंजीवाद और बाजारवाद का हुआ विस्तार, संस्कृति हो रही तिरोहित,

सत गुणों का हो रहा विनाश, समाज का हो रहा बड़ा ही अहित।

जब से बजने लगे है फूहड़ संगीत, लोक गीतों का हो रहा अवसान,

लोक कला, लोक संस्कृति और लोक भाषाओं का हो रहा दुःखद अवमूल्यन।

 

पहले हुआ करते थे सामूहिक मन्दिर, और होती थी बुढ़े बुजुर्गो की चौपाल,

मोबाइल “संस्कृति” के आने पर, गाँवों की संस्कृति हो गई तंगहाल।

शादी विवाह त्यौहारों में बजते थे, पहले के दिनों में मधुर मंगल गान,

आज की तो बात ही हुई निराली, सब तरफ बजते है फूहड़ द्विअर्थी गंदे गंदे गान।

 

बदल गए कपड़े पहनने के सलीके, बदल गए खान पान के तरीके,

आज बच्चों से कुछ भी कहो तो, लग जाते हैं सिखाने हमें ही नये “सलीके”।

पाश्चात्य संस्कृति के असर में डूबे, भूल रहे है सब अपनी सांस्कृतिक पहचान,

क्या होगा इस अगली पीढ़ी का, जो भूल गई है करना अपनी धरोहर का ही मान?

 

कहाँ रही वह पावन संस्कृति, रह गए हैं तो बस घृणा, कपट और छिछलापन,

सब कुछ तोलते स्वार्थ की तराजू पर, मिट गया मन से अपनों का अपनापन।

रह गई भाई-भाई की लड़ाई और नफरत, और रहा गया बड़े बूढ़ों का अपमान,

यही मिलेगा अगली पीढ़ी को अब, कैसे दूँ भविष्य निर्माण का सही सोपान?

 

जाने कहाँ से फैल जाता है मन में जहर, जाने क्यूँ होते हैं जातिगत नरसंहार?

हर तरफ घृणा, हिंसा, अनाचार, मिट गया मन से क्यूँ भावों का शिष्टाचार?

एक वक़्त था जब पराये भी अपने थे, अब तो अपने भी हो गए क्यूँ पराये?

यूँ ही सोचने पर मजबूर ना हुआ मैं, कि अगली पीढ़ी को हम क्या दे जाएँ?

 

एक वक़्त था जब पढ़ते थे एक साथ, रमेश, इरफान, जॉर्ज, और सलमान,

न कोई हिन्दू था, न मुस्लिम, न क्रिस्तान, होती थी रोज इन अपनों से दुआ सलाम।

अब रमेश “हिन्दू” हो गया, इरफ़ान “मुसलमान” हो गया, और जॉर्ज हो गया “क्रिस्तान”,

जाने कैसा यह वक़्त आ गया, इन अपनों को मिल गई सहसा परायों वाली पहचान?

 

क्या अगली पीढ़ी को यही दे जाएंगे, कुछ टूटे रिश्ते, टूटी भावनाएँ, और जीर्ण हुई पहचान?

कैसे दे पाएंगे हम अगली पीढ़ी को, भविष्य निर्माण का सफल सोपान?

अब भी वक़्त है, कुछ नहीं बिगड़ा है, आओ मिलकर गढ़ें हम भविष्य की राह,

जिसपर चलकर शायद मिल जाए अगली पीढ़ी को, जीवन पथ की सद्गुणी राह।

 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy