सोनी गुप्ता

Tragedy

4.7  

सोनी गुप्ता

Tragedy

ख्वाब हमसे रूठ गया

ख्वाब हमसे रूठ गया

2 mins
567


ख्वाब स्वप्न सब छोड़ चले, 

अश्रु भी संग वो बह चले, 

जो मिले थे गुल कहीं खिले, 

वो स्वप्न सब धूल में मिले, 

जाने क्या - क्या यहाँ छूट गया, 

क्यों वो ख्वाब मुझसे रूठ गया, 

भूल भला हमसे क्या हो गई? 

जो दीप जला था वो बुझ गया I


आंखों में पल रहा था, 

ख्वाब जैसे पिघल रहा था, 

छोड़ दो ख्वाब सारे, 

वो हमसे कह रहा था, 

प्रश्न अंतर्मन को खल रहा था, 

जवाब उनका ढूंढ रहा था, 

क्यों ख्वाब अपने में छोड़ गया, 

जाने क्या अपराध हमसे हो गया, 

जीवन में जिन, ख्वाबों को पाला, 

क्यों वो ख्वाब मुझसे रूठ गया? 


जिंदगी जैसे ठहर गई, 

हवा भी मौन हो गई, 

ख्वाब की क्यारी कहाँ गई? 

आज ख्वाबों की फिर याद आ गई, 

अभिलाषा पीर हो गई , 

याद नयन का नीर हो गई, 

ख्वाब का सफर यहीं छूट गया, 

जिंदगी का सफर यूँ बीत गया, 

अपने सारे वो मिटते रहे हमारे, 

जाने क्या - क्या यहाँ छूट गया? 


ख्वाबों को पिरोया हमने, 

माला की मोती सा संजोया हमने, 

नींदों को कई बार खोया हमने, 

ख्वाबों से श्रृंगार किया हमने, 

मन की आवाज को सुना हमने, 

ख्वाब जब छूटा सब जैसे बिखर गया, 

अब जीवन में कोई उमंग ना रह गया, 

अब खुशी भी वो अधूरी सी लगती है,

जिंदगी से ख्वाब का दामन छूट गया I


ख्वाब मेरी पहचान थी, 

ख्वाब ही मेरी जान थी, 

ख्वाब ही सफलता थी, 

ख्वाब जीवन की नव तरंग थी, 

कभी जीवन की वो नव उमंग थी, 

वो तरंग वो उमंग सब कहाँ गया? 

फुलझर गए सूखी डाली सा रह गया, 

मेरे ख्वाबों की जर्जरता तो देखो, 

ख्वाबों का गुलदस्ता भी अब मुरझा गयाI


अपनो के ख्वाब पूरे करने को, 

पंथ में उनके साथ चलने को, 

जिम्मेदारियों का बोझ लिए, 

मजबूर हो गए हम, 

ख्वाब अपने छोड़ने को, 

जो देखा वो ख्वाब कहाँ रह गया? 

जो था बचा वो शेष धुआं हो गया, 

जिंदगी बन गई गहन अंधकार का कुआँ, 

क्यों वो ख्वाब मुझसे रूठ गया? 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy