जो खुद से लड़ने जाता हूं जो खुद ही से हार जाता हूं तो फिर शायद मैं ही गलत हूं जो खुद से लड़ने जाता हूं जो खुद ही से हार जाता हूं तो फिर शायद मैं ही गलत...
बेरंग हो गई वो रंगीन शामें और बेजान बेरंग हो गई वो रंगीन शामें और बेजान
रूठ जाए जो खुद वो मनाता नहीं। रूठ जाए जो खुद वो मनाता नहीं।
कवि का अपने रूठे हुए महबूबा को मनाने की अनोखी कोशिश। कवि का अपने रूठे हुए महबूबा को मनाने की अनोखी कोशिश।
तेरी राह तकती देख, कबसे खाली पड़ी मेरी मधुशाला । - ये पंक्ति श्री हरिवंश राय बच्चन जी को नमन स्व... तेरी राह तकती देख, कबसे खाली पड़ी मेरी मधुशाला । - ये पंक्ति श्री हरिवंश राय...
अकेला मर भी जाऊं तो तुम्हे क्या फर्क पड़ता है अकेला मर भी जाऊं तो तुम्हे क्या फर्क पड़ता है