रंगो की रंगत अब होने लगी है कुछ फीकी क्यों ना होली पे फिर हुड़दंग मचाया जाए। रंगो की रंगत अब होने लगी है कुछ फीकी क्यों ना होली पे फिर हुड़दंग मचाया जाए।
बेरंग हो गई वो रंगीन शामें और बेजान बेरंग हो गई वो रंगीन शामें और बेजान
बना कर शब्दों का इन्द्रधनुष, आसमां पर छा सकती हूँ। बना कर शब्दों का इन्द्रधनुष, आसमां पर छा सकती हूँ।
लगता था वर्षों से सोया था। लेकिन अब मैं जाग चुका, बेजान सा पल भाग चुका। लगता था वर्षों से सोया था। लेकिन अब मैं जाग चुका, बेजान सा पल भाग चुका।
तड़पन के अश्क़ों में रक़्त न बहाता हो जहाँ। तड़पन के अश्क़ों में रक़्त न बहाता हो जहाँ।
बुझा- बुझा सा मन, सूना बेजान सा जीवन। बुझे मन से कैसे जिये कोई कुछ तो उत्साहित रहे य बुझा- बुझा सा मन, सूना बेजान सा जीवन। बुझे मन से कैसे जिये कोई कुछ तो उ...