कलम चलेगी
कलम चलेगी
बड़े दिनों से सोच रहा था।
कुछ परेशान सा रो रहा था।
न कुछ समझ में आता था,
न कुछ मुझे ही भाता था।
कलम क्या रुक सी गयी थी?
या स्याही सूख सी गयी थी?
कैसी उधेड़बुन में खोया था।
लगता था वर्षों से सोया था।
लेकिन अब मैं जाग चुका,
बेजान सा पल भाग चुका।
कलम में स्याही फिर भरी है।
चेहरे पर हँसी फिर हरी है।
एक नया युग फिर जन्मेगा,
एक सितारा फिर चमकेगा।
हाँ अब फिर कमल चलेगा,
हाँ अब फिर कलम चलेगी।