क्यों डरते हैं
क्यों डरते हैं
क्यों डरते है इस हार से हम ,
ये हार असल में जीना है
हमने मेहनत की रोटी खाई है,
ये अपना खून पसीना है....
हम विफल हुआ तो क्या खोया,
हमको कोशिश का मंत्र भी आता है
तपते शोलो की गर्मी से,
पत्थर हीरा बन पाता है....
खुद के दीपक बन जाओ तुम ,
इस अंधकार से मत डरना
ये जीवन तो एक मिट्टी है,
इसको स्वर्णिम है तुमको करना....
संघर्ष करो, संघर्ष करो
तुम इसकी गाथा लिख डालो,
कुछ करना है तो अभी करो,
अब व्यर्थ में माथा मत मारो....
इस व्यर्थ
समय में मत उलझो,
वरना जीवन तुमको उलझाएगा
कुछ करना है तो अभी करो,
ये कल ना वापस आएगा.....
तुम सूरज जैसा त्याग करो,
सुन्दर मोती बन जाओ तुम
दुनिया के सुर को मत छेड़ो,
अपना संगीत बनाओ तुम.....
जो बीत गया उसको भूलो
अब वर्तमान में जीना है,
हमने मेहनत की रोटी खाई है
ये अपना खून पसीना है.....
क्यों डरते है इस हार से हम
ये हार असल में जीना है,
ये हार असल में जीना है।