वीरता पुरस्कार विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा
वीरता पुरस्कार विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा
माँ की गोद में खेलते खेलते हुआ लाल अब बड़ा,
जिंदगी की कश्मकश राह पर जाके हुआ खड़ा।
बचपन से सेना में जाने की एक आस जगाई,
भारत माँ के प्रति अपनी शीश झुकाई।
परमवीरो को देखा करता,
मेरा मन भर जाता।
सदियों से बस एक ही सपना,
मातृभूमि को मानके अपना।
सेना में जाने का जुनून था,
देशवासियों को पहुँचाना सुकून था।
न खोफ मौत का ना आरजू जन्नत की,
बस इतना ही चाहता था जब शहीदों का जिकर हो,
मेरा भी नाम आए।
बचपन से एक आरजू थी,
मेरी जिंदगी में सरहद की शाम आए,
मेरी जिंदगी मेरे वतन के काम आए।
बस एक बात यह ठान के,
बिना परवाह किये जान के।
सेना में भर्ती हो जाऊंगा,
एक एक दुश्मन को मार बनाऊँगा।
उसने तो केवल धरती माँ को अपना सब कुछ माना था,
उसको तो केवल सेना में जाना था।
उसने मर्चेंट नेवी का खत इंकार किया,
थल सेना में जाना ही स्वीकार किया।
आखिर वो दिन भी आ खड़ा,
जब वो वतन की रक्षा करने चल पड़ा।
आँखें भी सभी की खुशियों से नम गई,
दो पल के लिए सभी के चेहरे से मुस्कान भी थम गई।
परिवार की खुशियां करनी थी पूरी।
कही रह ना जाए उनकी आस अधूरी,
बापू की थी सदियों से एक चाहत,
देख वरदी में मुझे मिलती उन्हें राहत।
देश के लिए शहीद हो जाए,
आज की बजह कल मर जाए।
डर तो बस बूढ़ी माँ का सताए,
कही वो घर में अकेली ना रह जाए।
घर वालोँ को किया अलविदा,
मातृभूमि पर होना था फिदा।
माँ की आँखों से आँसू आ झलके
पिता भी सीने में गम छुपाए, मुस्कुरा दिया हल्के-हल्के।
दे दिलासा निकल पड़ा,
फौलादी अपने इरादों को
क्या वो पूरा कर पाएगा,
अपने दिए वादों को।
सरहद पर पहुँचकर खाई यही कसम,
भारत माँ तुझे शत्-शत् नमन।
होके मजबूर परिवार से दूर,
बनाके नए नए यार,
सीमा पे रक्षा करने को तैयार।
धरती माँ की रक्षा में दिन रात लगाया,
बॉर्डर पर दुश्मन को मार भगाया।
शत्रु सीमा लाँघ ना जाए,
खड़ा रहा चट्टानों सा।
धरती माँ पे चोट ना आए,
खड़ा रहा फ़ौलादो सा।
धूल चटाई वैरो को,
जब उसने आँख उठाई हैं।
भारत माँ की सेना के रूप में,
उसकी मृत्यु आई हैं।
मिलती हैं वर्दी इनको,
यह किस्मत बाले होते है।
इनके होने से ही हम,
रातों में चैन से सोते है।
करता रहा बॉर्डर पर रक्षा,
देता रहा देशवासियों को सुरक्षा।
नहीं रहा किसी का भय,
हमेशा करता रहा पराजय।
सीमा पे कारगिल जंग का संदेश आ गया,
धरती माँ का उस
े आदेश आ गया।
दिन रात कारगिल का युद्ध लड़ता रहा,
वतन को शत्रुओ से बचाता रहा।
धरती माँ पर आच ना आए,
यही सोचकर कदम आगे बढ़ाए।
यारों वतन अपना बचाना था,
फिर चोटी पर अपना तिरंगा झंडा लेहरना था।
दुश्मन पर तूने गोली जो बरसाई,
देशवासियों की आँखे भर आई।
सीमा पे लड़ते-लड़ते शहीद हो गया,
माँ की आँचल से दूर उसका लाल हो गया।
ना जाने कैसे उसकी माँ रात भर सोए होगी,
उसके सीने में गोली लगने से पहले वो रोई होगी।
तिरंगा में लिपटा उसका पार्थिव शरीर आ गया,
परिवार वालों का तो मानो पूरा संसार उजड़ गया।
तिरंगा में लिपटा माँ को एक कागज का टुकड़ा दिख गया,
रण में जाने से पहले जवान एक खत लिख गया।
पूरे परिवार की फिक्र करते हुए,
जबान खत लिख गया माँ को ज़िक्र करते हुए,
माँ हर चेरहे में बस तेरा चेहरा दिख रहा,
तेरी याद मे तेरा लाल पत्र अंतिम लिख रहा।
ना जाने माँ तू मेरे फिक्र में कैसे रहेगी,
अगर में शहीद हुआ तो तू मेरे जाने का दर्द कैसे सहेगी।
माँ तेरा मुख देख याद में रोता हूँ,
तेरी चिंता में रातों में नहीं सोता हूँ।
माँ यह मत सोचना की तेरा लाल तुझसे दूर जा रहा,
तेरी कोख से दुबारा जन्म लेने तेरा लाल आ रहा।
माँ, रक्त की होली खेल के,
में इतिहास रचाऊँगा,
वैरी से देश को एक बार फिर बचाऊँगा।
माँ में थक कर नहीं रुकूंगा,
सास अंतिम तक सरहद पे लडूंगा।
जंग मे वैरो को पीठ ना दिकाउंगा,
आखरी गोली भी सीने में आऊंगा।
लड़ते लड़ते खुदको सोप दूंगा धरती को,
माँ बहुत नसीब वाला होगा में,
जब मेरे शहीद होने के बाद पिता कन्धा देंगे अर्थी को।
भाई बस मुझको तेरी याद सताए,
छोटी बहन का ख्याल रखना, कही तेरी कलाई सुनी ना रे जाए।
क्या तु मेरे जाने के बाद धरती माँ को दिया वादा निबाएगा,
अगर एक बेटा जाएगा तो दूसरा भी धरती माँ की रक्षा करने आएगा।
माँ पिता को मेरा प्रणाम कहना,
किसी की आँखों में आँसू आने ना देना।
मेरी कमी किसी को होने ना देना,
माँ को मेरी याद में रोने ना देना।
पत्र पढ़ के लाचार माँ ने रो दिया,
हमेशा के लिए अपने लाल को खो दिया।
आखरी लफ्ज़ यह दिल मांगे मोर कह गया,
वतन के लिए अपनी जान भी क़ुरबान कर गया।
जवान के शव को पूरे गाँव में फहराया,
उसके नाम का झंडा गाँव में लहराया।
जवान के शहीद होने से,
ऐसा लगा जैसे दिल का टुकरा गया दूर,
चल बसा देश का एक कोहिनूर।
ना करते कभी जवानो को अपमानित,
उसकी वीरता देख उसे
परम वीर चक्र से किया सम्मानित
ना जाने उसकी वीरता का कैसे कर्ज भरते,
आज भी सभी लोग उसे याद करते।