साहूकार
साहूकार
ले के आया साहूकार अपनी पोटली को
खरीदने कौड़ी के भाव सब को
जो भरी है पोटली उसकी, बलवानों के उस पर विश्वास से
दगा दे गया साहूकार, बलवानों को, चुरा कर उनके राज़
बनता है अब जगत लोभी, ले कर बलवानों का माल
करता है छुप छुप के बातें, बनाता है चुप चुप से साजिशें
बाँटने को बलवानों का ध्यान
ले कर सब कुछ उड़ने का ख्याल करता है,
साहूकार अपने ही ध्यान में
बैठा है ताक में हड़पने, सब को, दे के
कौड़ीयों का माल पीदीयों को
देखता है सपने जगत बाबू बनने के,
दबा के सब को अपने पैर के नीचे
चाहता है वो बलवानों को पछाड़ना
देता है वो झांसे हर मोड़ पे, आमने सामने
चाहता है वो बल, बलवानों का
बैठा है ताक में वो, बलवानों का बल पाने के लिए
जगत साहूकार बनने के लिए
मिल जाए जो बल उसे बलवानों का,
छीन ले वो सबका चैन
रखता है वो मंशा उसी की
हर दिशा में चाहता है वो अपना ज़ोर
भेज कर अपने बूढ़ों को, कर देना चाहता है वो सबको मोम
जो ना जाने वो, धस जायेंगे उसके पैर उसी की कब्र में
जो भापी उसने अपनी छलांग अपने कद से ज्यादा
साहूकार सिर्फ सिक्कों पे खेलता है, उसकी जान उन्ही में बसती है
उसका खेल सिक्कों से चलता है, झांसे से चलता है
बलवानों का बल उसके बस की बात नहीं, आज के समय में
अपने बूढे गुरगों की संख्या का ज़ोर वो दिखा नहीं सकता बलवानों को
रखता है वो योद्धाओं की भूमि पे भी अपनी लालची नज़र
बैठा है ताक में योद्धा के लंगड़ाने का
चाहता है वो अपने खोटे दिल में, अपने बूढ़े गुरगों की संख्या बसाने
योद्धा के आँगन में, योद्धा के लंगड़ाने पर
ढल रहा है योद्धा, समय के साथ, नरम हो रहें हैं उसके भी हाथ
बैठा है ताक में साहूकार, उसी रात के इंतज़ार में
जो ना जाने वो, वृद्ध हो रहें हैं उसके भी गुरगे
कब तक, कहाँ तक, ठहर सकेंगे, अपने वृद्ध होते हुए पैरों पे
जो ना जाने वो, डंडा उसका बन जायेगा उसकी ही बैसाखी
वीरों से आएगा टकराने, अपने ज़ोर से चोट मारने
पढ़ जायेगा उसका पासा उल्टा, वीरों की ललकार से
वो लुका छुपी खेल रहा है अब, समय बीताने के लिए
बैठा है ताक लगाए फिर से चोट मारने
बलवानों से मिल गए हैं वीर, संसार के उजाले के लिए
वीरों की भाति लड़े हैं, वीरों की भाति खड़े हैं
साहूकार की पोटली में हो गया है छेद
बह जायेंगे सिक्के, जैसे बाढ़ में खेत, मिटटी की तरह
रह जाएगा साहूकार, टापू पे खड़ा पेड़
इतिहास स्थिर नहीं होता, साहूकारी बल नहीं होता,
वो केवल पैसे का छल होता है
लुट गए सियाराम के संरक्षक भी, साहूकार की कौड़ीयौ पर
भूल गए अपनी धरती के मूल को, साहूकार के छल पर
ना टिक पाएंगे वो भी समय के पन्नों पर,
अपने अस्तित्व को साहूकार को बेच कर
वो भी बुझ जायेंगे, साहूकार के साथ, समय के भाव में
झुका ना सकेंगे भक्तों की भक्ति को, साहूकार के छल से
मिट जायेंगे, वो भी समय के साथ, धूल में
रह जाएगी केवल भक्तों की भक्ति, सियाराम की भूमि पर
साहूकार की परछाई में ली विरासती झल्लों ने भी शरण
बजता है ढोल साहूकार की परछाईं में से,अपनी गद्दी पे बैठने का
जो न मिलेगी उन्हे इस जनम में, ढोल बजाने से
वीरों का भी लेते हैं नाम, साहूकार की परछाईं में से
जो ना जाने वो, वानर भी रखे सब ज्ञान
और हम तो हैं ही भक्त, वानर राज के
जो हैं शक्तिशाली, विवेकशाली, भक्तिशाली, बुद्धिशाली,
प्रेमशाली, स्नेहशाली, तपस्वी और सहनशाली
विरासती झल्ले बजा रहे हैं बाजा साहूकार का, उलटे बांस से
उठा रहे हैं ऊँगली साहूकार पे, और लगा रहे हैं इलज़ाम वीरों पे
ना तो मिलेगी कुर्सी, ना हाथ आएगी खाने को मुर्गी,
बस पड़ जाएगी मिर्गी
उलटे बांस साहूकार का साथ देने पे ना आएगा कुछ हाथ
याद करें वो अपने पूर्वजों के तेज को,
ना की साहूकार के खोटे सिक्कों की झंकार को
बढ़ चूके हैं अब वीर, नई दिशा की ओर
नया सवेरा आयगे, वीरों को, बलवानों को, न
ई ऊँचाइयों पे ले जाने को
दिल से आगे बढ़ने को
साहूकार को पीछे छोड़ने को
वीर, बलवान, उज्ज्वल रहते हैं , उजाला ही लाते हैं
जो ना जाने वो, हम हैं सूर्य देव के भी भक्त
