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‘ख़्याल’

‘ख़्याल’

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ख़्याल के बारे में एक ख़्याल आया है मुझे।
ख़्यालों में रहना बड़ा अच्छा लगता है मुझे।
क्यूँ अच्छा लगता है, ये तो मैं नहीं जानता।
ख़्याल होते क्या हैं, ये भी मैं नहीं जानता।
हाँ  मगर ख़्यालों की दुनिया अलग होती है।
जैसा मैं चाहता हूँ बिलकुल वैसी होती है।
यकीन मानिऐ इसमें अफ़ीम सा नशा है।
ख़्यालों की दुनिया में हर कोई बादशाह है।
यहाँ दोपहर को धूप इतनी तीखी नहीं होती।
यहाँ स्याह रातें भी इतनी काली नहीं होतीं।
यहाँ सुबह नींद भारीपन से नहीं खुलती।
यहाँ शाम को इतनी थकान नहीं होती।
ख़्याल के बारे में एक ख़्याल आया है मुझे।
ख़्यालों में रहना बड़ा अच्छा लगता है मुझे।
क्यूँ अच्छा लगता है, ये तो मैं नहीं जानता।
ख़्याल होते क्या हैं, ये भी मैं नहीं जानता।
हाँ पर घंटों यूँ ही कुछ बेतुका सा सोचते रहना, अच्छा लगता है।
कुर्सी पर लेटायमान होकर ख़्याली पुलाव पकाना, अच्छा लगता है।
कभी कभी तो मेरी प्लास्टिक की कुर्सी भी मेरे साथ ख़्यालों में डूबती है।
मैं पसरता हूँ और मेरी कुर्सी भी पैर फैलाती जाती है।
एक शाम मैं और मेरी कुर्सी ख़्यालों के ओवरडोज़ में थे।
पूरी शिद्दत से ख़्यालों के समंदर में गोता लगा रहे थे।
जामुन पग चुके हैं, अब छत पर डेरा डाला जाऐगा।
मुँडेर पर लटक के जामुन का पूरा गुच्छा तोड़ा जाऐगा।
पास के मंदिर के हैंडपंप पर फिर जामुन धुलेंगे।
सारे जाँबाजों में बराबर बँटेंगे।
वैसे पड़ोसी छतों पर घुसपैठ पड़ोसी मुल्क में घुसने से कम नहीं है।
यहाँ गोलियाँ नहीं चलती, पर ख़तरे सरहद से कम नहीं हैं।
सरहद से ख़्याल आया कि आख़िर ये सरहदें हैं क्यूँ।
इंसानों के बीच ये फ़ासलों की दीवारें हैं क्यूँ।
ना जाने किसने ये बेतुकी लकीरें खींची हैं।
ना जाने क्यूँ हमने इतनी नफ़रतें सींची हैं।
किसे क्या मिला इन मनहूसों को पैदा करके।
ना जाने क्या हासिल हुआ इनके साये में पलके।
लकीरों से ख़्याल आया कि ये लकीरें सिर्फ़ मुल्कों के दरमियाँ नहीं हैं।
हम गलीच इंसानों ने ये लकीरें दरअसल एक दूसरे के बीच खींची हैं।
कभी कभी लगता है, ये लकीरें एक बहाना हैं बस।
नफ़रतों को जायज़ ठहराने का ज़रिये है बस।
सच तो ये है कि हम आज भी जानवर ही हैं।
जंगल छोड़ दिया पर आज भी बंदर ही हैं।
लकीरें खींच पाले बाँटकर कबड्डी खेलने का शौक़ है हमें।
इसकी टाँग खींचकर, उसको घेरकर पटकने का शौक़ है हमें।
तो बस इसलिए हम लकीरें खींचते चलते हैं।
नफ़रतों की ख़ूँखार तस्वीरें खींचते चलते हैं।
तस्वीरों से ख़्याल आया कि माँ के पास अभी भी वो बक्सा होगा,
मैं, माँ-पापा, मेरा भाई, सब उस बक्से में बंद होंगे।
उस बक्से में वो ख़ज़ाना है, जो कोई दौलत नहीं ख़रीद सकती,
दुनिया की कोई भी चीज़ उसे बदल नहीं सकती।
तस्वीरें के एल्बम भर नहीं हैं उसमें, यादें हैं।
खट्टी-मीठी, अच्छी-बुरी, हर तरह की बाते हैं।
उस बक्से में माँ के बचपन से लेकर मेरी जवानी तक की कहानी है।
हाँ सचमुच कुछ तस्वीरें तो एक दम रूहानी हैं।
लेकिन कबसे वो बक्सा देखा तक नहीं है मैंने।
जिससे इतना लगाव था, उसे बक्से में बंद करके बस रख दिया मैंने।
वैसे अब इतने सालों के बाद तस्वीरें होंगी क्या उस बक्से में?
या हमारे ज़मीर की तरह उसमें भी दीमक लग गई होगी।
ख़ैर तस्वीर हो या ना हो, याद कभी नहीं जाऐगी, कहीं नहीं जाएगी।
उसकी फ़ितरत इंसानों से अलग है, वो आख़िरी साँस तक साथ निभाऐगी।
हाँ सच ही तो, याद ही तो मेरी जागीर है।
टूटी-फूटी, धूल चढ़ी कुछ तस्वीरें हैं।
कुछ पल हैं कुकर में जो पकते रहते हैं।
दबाव बनता है, वो धुँआ होते रहते हैं।
कुछ धीमी शामें भी हैं मेरी विरासत में।
कुछ जागती हुई रातें आज भी हैं हिरासत में।
मेरी वसियत में कुछ बाँहों में बीती सुबह लिख देना।
उसकी आँखों के चक्कर में चाय में डूबे बिस्किट लिख देना।
हाँ सच ही तो याद ही तो मेरी जागीर है।
धुँधली ही सही, मेरी याद में मेरी पुरानी तस्वीर है।
वैसे यादों में रहने भर की आदत नहीं है मुझे।
मैं और मेरी कुर्सी तो सुनहरे कल के ख़यालों में भी ख़ूब डूबते हैं।
हाँ वही सुनहरा कल जिसकी कल्पना युगों युगों से हो रही है।
हर दौर के ख्यालबाजों को इससे बड़ी मोहब्बत रही है।
कितना अच्छा हो अगर नफ़रत का वजूद ही मिटा दिया जाऐ।
हर शक्स बस प्यार करे, मन की दीवारें गिरा दी जाऐं ।
सुनहरे कल के सुनहरे ख़्याल से गुदगुदी होने लगती है।
इस ख़्वाब के मुक्कमल होने की जल्दी होने लगती है।
और तभी धड़ाम, मेरी कुर्सी के पैर जवाब दे गऐ ।
ये बेचारे ख़्यालों का और बोझ नहीं झेल पाऐ ।
लेकिन कुर्सी का टूटना और मेरा ज़मीन पर गिरना काम आया।
ऐसा लगा कि क़ुदरत का मेरे लिऐ कोई पैग़ाम आया।
हक़ीक़त और ख़्यालों की दुनिया अलग होती है।
यहाँ की बारिश वहाँ की बारिश से अलग होती है।
इसलिए दोस्तों मेरी ये गुज़ारिश है तुमसे।
ख़्याल रहे कि तुम ख़्यालों में न रहो।
जो मैंने सहा है वो दर्द तुम ना सहो।
और अगर मेरा मशवरा ना मानना हो तो।
ख़्याल रहे कि कुर्सी प्लास्टिक की ना रहे।


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