नव रूप को तैयार
नव रूप को तैयार
नव रूप को तैयार
मिट्टी को तैयार किया रूप दिए का देने को
अपनी मिट्टी अपना देश यही पहचान बनाने को
हाँ, तैयार है चाक पर चढ़ने मेरी माँ भारती की मिट्टी
कुम्हार गढ़ देता है मनचाहे आकार में मिट्टी
नव रूप को तैयार
दिए भी आकार में ढलने को रहते हैं तैयार
मिट्टी भी देखो चाक पर लगने को हैं तैयार
मिट्टी खुश है कि करेगी देश भर को रोशन
अंधेरे को देकर मात करेगी हर घर को वो रोशन
नव रूप को तैयार
कोई आकर पाएंगी बस यही नही कामना उसकी
कभी घड़ा, कभी दीया बनकर करती हैं सेवा सबकी
धन्य मेरे देश की माटी धन्य मेरे देश का कुम्हार
गढ़ देता है देखो न्यारे न्यारे रूप श्रंगार मेरा कुम्हार
नव रूप को तैयार
और भी ना जाने क्या, क्या करने को तैयार
स्वयं जी जान से लगता मिट्टी में थाप घड़े समान
ढाल लेता मिट्टी को किसी भी रूप आकार
यही है मेरे देश की मिट्टी व कुम्हार का कमाल
नव रूप को तैयार
कुम्हार के हाथ का स्पर्श पा मिट्टी भी होती धन्य
सुंदर रूप में बनकर दीया भी करता है अभिमान
भारत भूमि की तो कल्पना ही है बेमिशाल
यही है मेरे देश के कारीगर का कमाल बेमिशाल
नव रूप को तैयार।