प्रतीक्षा की सुरंग
प्रतीक्षा की सुरंग
प्रतिक्षाएँ धुंधली सी ही सही
पर रहती हैं सुरंग बना मन के अतल में
जैसे किसी लम्बी सी अंधेरी व संकरी
गहरी सी खाई में शशि की किरण मात्र
झलक दिखला कर चिढ़ा सी रही हैं
यादों की जकड़न अकड़ खड़ी रहती है मानो
अंतिम छोर की पकड़ पहले छोर से बंधी हो
ठीक वैसे ही जैसे यादों की डोर बंधी होती है
प्रतिक्षाएँ धुंधली सी ही सही
पर रहती हैं सुरंग बना मन के अतल में
मनःपटल पर उकरित सी यादों की लकीरें मात्र
अन्तहीन सुरँग अंतहीन सफर सा जीवन
जिनमें ढेरों बीती यादों के दर्द व टीस हो
आँखों में ढेरों सपनो की चित्रकारी उभर रही हो
जो मात्र गहरी नींद के स्वप्न के मानिंद हो
ख़्वाहिशों के ख्वाब जो शायद ही कभी पूर्ण हो
प्रतिक्षाएँ धुंधली सी ही सही
पर रहती हैं सुरंग बना मन के अतल में।