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Manju Saini

Others

4  

Manju Saini

Others

:उद्वेग

:उद्वेग

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न जाने क्यों उद्वेग की पीड़ा

मन की पीड़ा का बहाव न हो तो

मानसिक उद्वेग पैदा करती हैं

और मौन को ओढ़ लेती हैं फिर

द्वेष से मन भृमित होता हैं अंततः

पीड़ा की ज्वाला भस्म कर डालती हैं

न जाने क्यों उद्वेग की पीड़ा

अथाह गहराई में बैठी हल्की सी

उम्मीद की किरण भी खा जाती हैं

रह जाता हैं बस राग द्वेष और

मन में हीन भावना मानों कि शायद

मन मौन और पत्थर सा न हो जाये

न जाने क्यों उद्वेग की पीड़ा

विरह वैराग्य की और न धकेल दे

उद्वेग शांत हो तो रह जाता हैं

तूफान के बाद का सन्नाटा मात्र

फिर से वही धड़कती हुई मन की पीड़ा

विरह वेदना की धड़कती ज्वाला सी

न जाने क्यों उद्वेग की पीड़ा।


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