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Sudhir Srivastava

Inspirational

3.8  

Sudhir Srivastava

Inspirational

मेरा काव्यात्मक परिचय

मेरा काव्यात्मक परिचय

6 mins
785


विमला ज्ञान प्रकाश की

ज्येष्ठ संतान बन जन्म लिया

18 मार्च 1968 को धरा पर

था मेरा अवतरण हुआ।

बरसैनियां ग्राम में जन्मा मैं

तहसील मनकापुर का हिस्सा है

गोण्डा जिला में शामिल है

उ.प्र. राज्य हुआ मेरा

भारत है पहचान मेरी ।

मुंशी जी की कृपा देखिए

जन्मदिन इतिहास हुआ,

एक जुलाई 1969

ये मेरी पहचान बना।

बचपन बीता परिवार बीच

संयुक्त था तब परिवार मेरा,

भरा पूरा परिवार था तब

ढेरों लाड़ दुलार मिला।

प्रारंभिक शिक्षा चांदपुर में

प्रधान की बगिया स्कूल मेरा,

भवन विहीन विद्यालय में

शिक्षा का श्री गणेश हुआ।

असोथर ब्लाक जिला फतेहपुर में

पिता नौकरी करते थे,

कौण्डर निवासी राजपाल वर्मा संग

संबंध उनके भातृवत थे।

एक साल की खातिर ही सही

माँ संग हम भी घूम लिए,

राजपाल जी शिक्षक थे

पाँचवीं वहीं पर पास किए।

फिर पापा का मिहींपुरवा ब्लॉक

बहराइच जिले में स्थानांतरण हुआ,

फिर से गाँव आ गये हम

सारा घर जैसे निढाल हुआ।

बाबा महाबीर ताऊ रामचंदर

चाचा जय प्रकाश ओम प्रकाश का

हमको बहुत ही प्यार मिला।

फिर ताऊ के निर्देशन में

आगे शिक्षा शुरु हुई,

चार किमी. मनकापुर पैदल

दीदी दद्दा संग नियत बनी।

आठवीं पास जब हुआ था मैं

बस सेवा भी शुरु हुई,

आने जाने की सुविधा फिर

सबकी ही आसान हुई।

ए.पी.इंटर कालेज से

हाईस्कूल था पास किया,

इंटर करने की खातिर

टामसन गोण्डा में प्रवेश लिया।

इंटर पास किया जब मैंने

बी.एस.सी. का विचार किया,

एम.एल. के. बलरामपुर में

एडमिशन मेरा था हुआ।

कारण जो भी रहा मगर

पहले साल ही फेल हुआ,

छोड़ दिया इस सपने को

आई.टी.आई. फैजाबाद में

तब मैंने प्रवेश लिया।

परिवहन निगम में अप्रेंटिस कर

वापस जब मैं घर आया,

इतना था उत्साह मेरा

फाइनेंस कं. ज्वाइन की।

कं. चली तो ठीक मगर

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आई,

हमको बेगाना करके

जब रातों रात वो भाग गई।

संविदा परिचालक की नौकरी की,

दुर्भाग्य ही था ये मेरा

नौकरी ये केवल नाम की थी।

जीवन के झंझावातों से

जूझता रहा,बढ़ता ही रहा,

11 मार्च 2000 को पापा जी

हमसे जैसे रुठ गये,

जीवन की कठिन डगर पर

हमें अकेला छोड़ गये।

भाई सुशील को तब मैंनें

पापा की नौकरी दिलवाई,

निर्णय पर मेरे बहुतों ने

तब ऊँगली थी खूब उठाई।

ईश्वर की इच्छा ये शायद

निर्णय जो मैनें था लिया,

अपने ही निर्णय पर

मैं अडिग हो गया था।

ताऊ जी का संरक्षण ही

अब बस एक सहारा था,

इस मुश्किल में आगे आ

बढ़कर हमें उबारा था।

किसी तरह से बी.ए.किया

किसी तरह डिग्री पाई,

जैसे तैसे बस मेरी

इतनी ही शिक्षा हो पाई।

पत्राचार से ही मैनें

पत्रकारिता कोर्स किया,

आगे चलकर ये मेरे

कम से कम कुछ काम आई।

कुछ पत्र पत्रिकाओं से सीधे

मैं कुछ समय तक जुड़ा रहा,

पत्रकार बन थोड़े दिन में

लेखन को बड़ा आधार मिला।

15 फरवरी 2001को ताऊ जी ने

अंजू के संग ब्याह दिया,

पापा के न होने का

अहसास हमें होने न दिया।

भाई सर्वेश सुनील संग

बहन शिखा की शिक्षा की खातिर

इसी वर्ष जमीन लिया,

पापा के ही पैसों से गोण्डा में

अपना मकान था खड़ा किया।

जीवन यापन की खातिर तब

मैंने दुकान खोल लिया,

परिवहन विभाग ने फिर हमको

एक बार और ठग ही लिया।

नौकरी मिली न दुकान रही

दुविधा बड़ी सामने थी,

परिवार के पालन की खातिर

कुछ करना भी मजबूरी थी।

कंपनियों में काम किया

दुर्भाग्य संग भी बना रहा,

रेड चीफ हरिद्वार में भी

डेढ़ साल था काट लिया।

लौट के बुद्धू घर को आये

ऐसा ही हुआ हाल मेरा,

रोजी रोटी का संकट फिर से

सामने मुँह बाये था खड़ा।

नयी कंपनी के झाँसे में

मैं था फिर एक बार फँसा,

सब कुछ अच्छा चला मगर

फिर जैसे कुठाराघात हुआ,

भुगतान से हाथ था खींच लिया।

जैसे तैसे उम्मीदों संग

थे हमनें दिन कुछ काट लिए,

फिर जीवन यापन की खातिर

छोटी से एक दुकान किए।

प्रयासों का रंग जम रहा था

दुर्भाग्य सामने फिर था खड़ा,

28 अप्रैल 2019 में

माँ का सानिध्य भी छूट गया,

ऐसा लगा तब मुझको

सब कुछ मेरा लुट ही गया।

सिलसिला यहीं पर रुका नहीं

एक और कुठाराघात हुआ,

25 मई 2021को आखिर

पक्षाघात ने वार किया,

जीवन की उम्मीदों पर

फिर एक बार प्रहार हुआ।

इलाज हुआ और ठीक हुआ

पर सपना था बिखर गया,

अव्यवस्था के चक्कर में

दुकान भी बंद करना पड़ गया।

अब फिर जीवन यापन का संकट

मुँह बाये सामने खड़ा।

बेटियों संस्कृति गरिमा के

भविष्य की चिंता सता रही,

लगता है अंतिम साँसों तक

रहेगी मेरे परीक्षा की घड़ी।

ईश्वर की लीला न्यारी है

ये बात मुझे भी पता तो है,

शायद इसलिए ये सुधीर

शर्मिंदा भी है,जिंदा भी है।

इंटर से लेखन शुरु हुआ

छपने छपाने का दौर चला,

नाम, मान सम्मान का स्तर

धीरे धीरे बढ़ने था लगा।

कुछेक वरिष्ठों का संग

मेरे बहुत काम आया,

मंचों पर काव्य पाठ करने का

सौभाग्य भी तब मैंनें पाया।

कुछ लेखन वाले मित्र मिले

संग संग मै बढ़ता ही रहा,

छोटी बड़ी पत्र पत्रिकाओं, संकलनों में

आये दिन छपता भी रहा।

ये मेरा बड़ा सौभाग्य रहा

लेखन को मिलता सम्मान रहा,

अनेक संस्थाओं ने मुझको

सम्मान पत्र दे मान दिया।

दुर्भाग्य पुनः आगे आया

लेखन से मुझको भटकाया,

पापा के न रहने का

बस उसने आधार बनाया।

2000 में मेरा लेखन

पूर्णरुप से ठहर गया,

फिर लेखन की कभी भी इच्छा

न मेरे मन में जागृति हुआ।

ईश्वर की लीला फिर देखी

पक्षाघात बहाना बना,

मेरे लेखन का क्रम फिर

अचानक चर्चा का केंद्र बना।

जुलाई'2020 से फिर

लेखन मेरा शुरु हुआ,

माँ शारदे की महिमा है

नित आगे बढ़ता ही गया।

देश विदेश में छपता हूँ

नित ही मिलता सम्मान मुझे,

मेरी उम्मीद से भी आगे

बढ़कर मिलता है मान मुझे।

कई संस्था में पदाधिकारी हूँ

कुछ देने को लालायित हैं,

समय स्वास्थ्य की दुविधा में

मेरी अपनी बंदिशें हैं।

लाइव काव्यपाठ, गोष्ठियां भी

अब तो मेरी हो रही हैं,

साहित्यिक जगत में नित मेरी

पहचान रोज बढ़ रही है।

देश के हर हिस्से में मेरी

नित मेरा नाम बढ़ रहा है,

बड़े नामों से बातचीत का

मुझको आधार मिल रहा है।

छोटे, बड़े,नवोदित, स्थापित

कलमकारों ,मंचो का

मिलता है सानिध्य मुझे,

प्यार, दुलार, अपनेपन संग

आशीषों का मिलता भंडार मुझे।

लेखन के कारण बहुतेरे

रिश्ते नित बनते रोज नये,

छोटे बड़े भाई, बहन संग

अभिभावक भी कई बने खड़े।

बहुतों ने प्रेरित किया मुझे

हौसला बढ़ाते हैं कितने,

प्रेरित मुझसे माँगते मार्गदर्शन

अधिकार समझ जाने कितने।

वो सब नहीं मानते मुझको

मैं तो छोटा कलमकार हूँ,

अपने अनुभव और ज्ञान को

मैं भी बाँटता रहता हूँ।

बस मेरी इतनी इच्छा है

वो सब शिखर को छू जायें,

मेरी उम्मीदें उनसे हैं जो

वो सब पूरे कर जायें।

उन सबको बढ़ता देख

हौसला मेरा बढ़ता रहता,

अपनी चिंता से विमुख सदा

उन सबकी चिंता में मैं घुलता।

मैं बस यही सोचता हूँ

वो सब नाम कमायें खूब,

मेरे न रहने पर भी मुझको

दिल में जिंदा रख पायें वो

निश्चित ही पहचान बहुत।

बस इतना सा परिचय है

क्या क्या और बताऊँ मैं,

मरकर भी इतनी सी इच्छा है

किसी के काम तो आऊं मैं।

नेत्रदान संकल्प कर लिया

देहदान भी करना है,

जीवन का आधार किसी

मरकर भी बनूँ ये सपना है।


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