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मिली साहा

Inspirational

5.0  

मिली साहा

Inspirational

सफलता की कहानी

सफलता की कहानी

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सफलता की एक ऐसी कहानी ये, जिसने बदला नज़रिया,

केवल सोच बदलकर,सफलता का अद्भुत इतिहास रचाया,

कोई भी बाधा रोक न पाएगी आप के बढ़ते हुए कदमों को,

गर आपने हिम्मत न हारी और खुद को खास समझ लिया।


भोला भाला सा एक लड़का रहता था एक छोटे से गांँव में,

गरीबी और आर्थिक तंगी की बेड़ियांँ, बंँधी जिसके पांँव में,

पिता का हो गया देहांत मांँ औरों के घरे में करती थी काज,

ऐसे ही चल रही थी ज़िन्दगी उनकी जीवन की धूप छांँव में।


मांँ जो कुछ भी कमाकर लाती, उसी से चलता था गुज़ारा,

दुनिया की इस भीड़ में मांँ बेटा ही थे एक दूसरे का सहारा,

गांँव के एक छोटे से स्कूल में, पढ़ता था वो बालक मासूम,

चुपचाप रहता था हर दम, चिंतित सा लगता उसका चेहरा।


क्यों रहता था ऐसा किसी शिक्षक को जब समझ न आया,

तब स्कूल की शिक्षिक ने, एक पत्र उसके हाथों में थमाया,

कहा, इस पत्र को, जाकर अपनी मांँ को तुम दे देना ज़रूर,

खोला भी नहीं पत्र लेकर हाथों में दौड़ा-दौड़ा वो घर आया।


खोलकर देखा पत्र माँ ने जब, पढ़ते ही लगी वो मुस्कुराने,

अचंभित होकर बेटे ने कहा, माँ बोलो क्या लिखा है इसमें,

मांँ ने कहा, इसमें लिखा है आपका बेटा है, बड़ा होशियार,

और स्कूल में ऐसे शिक्षक नहीं जो सक्षम हो इसे पढ़ाने में।


इसलिए इसे दाखिल करवाओ आप, किसी और स्कूल में, 

मांँ ने कहा होशियार बेटा मेरा कुछ तो बात है इस फूल में,

बेटे ने सुनी मांँ की बात तो उत्साह से मन उसका भर गया,

मन ही मन सोचने लगा वो, कुछ तो खास है ज़रूर मुझमें।


फिर अगले ही दिन माँ ने दूसरे स्कूल में दाखिला करवाया,

अपने बेटे के लिए, सफ़लता का एक नवीन रास्ता बनाया,

मेहनत की तब बेटे ने भी और खूब मन लगाकर की पढ़ाई,

वह लड़का था आइंस्टाइन, जो महान वैज्ञानिक कहलाया।


बूढ़ी हो चुकी थी मांँ, अचानक एक दिन स्वर्ग सिधार गई,

किंतु आर्थिक तंगी में भी बेटे को अच्छी ज़िंदगी वो दे गई,

आइंस्टाइन मांँ को याद कर, उनका सामान निहारने लगा,

सामानों में पत्र देख, उसे वो पुरानी बात उसे याद आ गई।


खोलकर देखा, आश्चर्यचकित हुआ एक एक शब्द पढ़कर,

क्या लिखा था उस पत्र में, हैरानी होगी आपको जान कर,

पत्र में लिखा था, हमें यह बताते हुए, हो रहा है बहुत दुःख,

पढ़ाई में कमज़ोर आपका बेटा, कहता नहीं कुछ खुलकर।


इसकी उम्र के साथ नहीं हो रहा, इसकी बुद्धि का विकास,

स्कूल से निकाल रहे हैं इसको रख नहीं सकते अपने पास,

करवा दीजिए इसका दाखिला आप, किसी और स्कूल में,

पढ़कर पत्र आइंस्टाइन को हुआ उस मुस्कान का एहसास।


वो मुस्कान जो पत्र पढ़ते समय उसके मांँ के होंठों पर थी,

पत्र की एक-एक बात झूठ होकर भी वो माँ झूठी नहीं थी,

बस शब्दों की हेरा फेरी थी जिंदगी बदल दो या बिगाड़ दो,

पत्र को इस प्रकार पढ़कर माँ ने बेटे की सोच बदल दी थी।


आइंस्टाइन वही लड़का था, जिसे स्कूल से निकाला गया,

जिसे उसकी सोच ने, कि वो कितना खास है, बदल दिया,

दुनिया चाहे कुछ कहे मायने रखता है, हम क्या सोचते हैं,

स्वयं के बारे में, और आइंस्टाइन ने भी तो, यही था किया।


किसी ने सोचा भी न होगा ये लड़का बुलंदियों को छुएगा,

कमज़ोर दिमाग जिसे कहा गया,वो जीनियस हो जाएगा,

स्वयं के बारे में, सदैव सकारात्मक सोच रखना है जरूरी,

यही सोच आपकी सफलता में, मुख्य भूमिका निभाएगा।


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