रिश्तों की महक
रिश्तों की महक
उलझते रिश्ते सुलझा सको तो सुलझा लो
दूर जाने के बाद कोई लौट कर आता नहीं
फिर मन में पछताने से बेहतर है कहीं
थोड़ा अब ही क्यों न झुक जायें अभी
ये रिश्ते ही तो हैं जो जीने की वज़ह हैं
वरना जाना सबने तन्हा ही है इक दिन
क्यों न इस छोटी सी जिंदगी को रिश्तों
से आबाद कर लें खुशियां अपने नाम कर लें।
