शब्दों का मायाजाल
शब्दों का मायाजाल
लेखन और शब्द दोनों इक ही तो हैं
दिखते अलग अलग हैं यही तो दुविधा है
अमूर्त कल्पना में मन के किसी कोने में
बिखरे रहते हैं इधर-उधर कहीं
विचारों के आकार में मूर्त रूप लेकर
शब्दों में ढलने लगते हैं, क़लम से निकलकर
लेखक की कल्पना का आकार हैं ये शब्द
शब्दों को जादू की तरह पकड़ता है
अपने लेखन से जादू वो करता है
लेखन और शब्दों का मायाजाल वो रचता है
