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Dinesh Dubey

Abstract

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Dinesh Dubey

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नियत

नियत

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नियत सबकी बदल रही है ,

इंसानियत अब टहल रही है,

मतलब से हैं सब खुशहाल,

आस पास का ना जाने हाल।

अपनो से कोई रिश्ता नहीं है,

प्रेम से किसी को वास्ता नहीं है,

अब खाते हैं टेस्टी पास्ता सभी ,

परवाह करते ना किसी की कभी।

अपना काम रहे हरदम बनता ,

भाड़ में जाए बेदम जनता ,

नेताओं की सोच यही है ,

जुबान में उनके लोच बहुत है ।

अहंकार में है डूबे इंसान सभी,

इंसानियत ना अब दिखती कभी,

बातें करते सभी बड़े बड़े ,

बेच देते हैं इंसानियत खड़े खड़े।


क्रमशः



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