कैसे बिठाऊं
कैसे बिठाऊं
कैसे बिठाऊं किसी को,
अपने मन के उपवन में,
जहां खिल रहा प्यार के फूल,
महका रहा तन बदन को।
शुषोभित कर रही हैं कलियां,
मेरे मन के आंगन को,
देख मन के ऋतुपर्णा को,
दिल भी उल्हासित हो उठा।
मन का मोर नाच रहा है,
मन के गलियारे में,
कहीं बचा नही कोई स्थान,
कैसे बिठाऊं किसी को मन में।