सत्य हूं मैं
सत्य हूं मैं
मैं अकेला चल रहा हूं
भीड़ के संसार में
है नहीं कोई खेवैया,
नाव है मझधार में
क्या करूं मैं ?
किससे पूछूं ?
कोई बतलाए ज़रा !
हर किसी ने मुंह मोड़ा
क्या हूं मैं इतना बुरा ?
खो चुका हूं
अब नहीं मेरा चलन व्यवहार में
सत्य हूं मैं,
बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।
मैं अकेला चल रहा हूं...
मैं हूं कड़वा,
मैं हूं तीखा,
मैं हूं थोड़ा अटपटा - सा
लोगों ने त्यागा मुझे
चाहा कुछ बस चटपटा - सा
था कभी मेरा बसेरा
हर जगह, हर पंत में
अ
ब नहीं मिलता कहीं मैं
किसी भी संत में
न कहानी
न किताबों
न किसी अख़बार में
सत्य हूं मैं,
बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।
मैं अकेला चल रहा हूं...
मैं जिधर जाता
उधर ही पोल खुल जाती सभी की
मुझको अपनाया जो होता
जीत हो जाती कभी की
न मैं शासन,
न प्रशासन,
न किसी भी न्याय में
मुझको पाओगे कहां तुम
अब किसी अभिप्राय में !
झूठे वादों से बनी,
इस मूर्त - सी सरकार में
सत्य हूं मैं,
बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।
मैं अकेला चल रहा हूं...