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Kavi Suneel Kumar

Drama Inspirational Tragedy

4.9  

Kavi Suneel Kumar

Drama Inspirational Tragedy

सत्य हूं मैं

सत्य हूं मैं

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मैं अकेला चल रहा हूं

भीड़ के संसार में

है नहीं कोई खेवैया,

नाव है मझधार में


क्या करूं मैं ?

किससे पूछूं ?

कोई बतलाए ज़रा !

हर किसी ने मुंह मोड़ा

क्या हूं मैं इतना बुरा ?


खो चुका हूं

अब नहीं मेरा चलन व्यवहार में

सत्य हूं मैं,

बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।

मैं अकेला चल रहा हूं...


मैं हूं कड़वा,

मैं हूं तीखा,

मैं हूं थोड़ा अटपटा - सा

लोगों ने त्यागा मुझे

चाहा कुछ बस चटपटा - सा


था कभी मेरा बसेरा

हर जगह, हर पंत में

अब नहीं मिलता कहीं मैं

किसी भी संत में

न कहानी

न किताबों

न किसी अख़बार में

सत्य हूं मैं,

बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।

मैं अकेला चल रहा हूं...


मैं जिधर जाता

उधर ही पोल खुल जाती सभी की

मुझको अपनाया जो होता

जीत हो जाती कभी की

न मैं शासन,

न प्रशासन,

न किसी भी न्याय में

मुझको पाओगे कहां तुम

अब किसी अभिप्राय में !


झूठे वादों से बनी,

इस मूर्त - सी सरकार में

सत्य हूं मैं,

बिक चुका हूं झूठ के बाज़ार में ।

मैं अकेला चल रहा हूं...



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