पत्नी
पत्नी
पत्नी से बढ़कर नहीं है, कोई सगा
जो देता है, अपनी ही पत्नी को दगा उससे बढ़कर न होता है,
कोई गधा जो खुद, खुद, हाथों घोंटता है, गला
पत्नी से बढ़कर नहीं है, कोई बड़ा पत्नी खुश लगता मिल गया,
खुदा पत्नी तो लक्ष्मी का ही रूप है, दूजा पत्नी को गाली दे, क्या आयेगा, मजा
जो भी करते है, इसका सम्मान सदा वो घर फिर स्वर्ग बन जाता
समूचा जहां पर अपमानित होती है, महिला वहां कभी न रहती है, लक्ष्मी निर्मला
उस मनुष्य का रोज बजता है, तबला जिस मनुष्य का चरित्र होता है, दुबला
जो अपने चरित्र पर रहता है, पक्का वो फिर लाखों में रोशन होता है, चेहरा
उसका हो नहीं सकता है, कभी भला जो पर स्त्री पर कुदृष्टि डालता है,
सदा वो एक दिन यहां अवश्य पाता है, सजा जो भीतर से गंदा, बाहर से होता, उजला
जो हर स्त्री को देखता, मां-बहिन जैसा उसे आदम क्या, फरिश्ता भी करे,
सजदा जो हर स्त्री को मां मानता, पत्नी सिवा उसके घर कलह का रहता नहीं, निशां
