Pooja Yadav

Abstract Drama Inspirational

2.3  

Pooja Yadav

Abstract Drama Inspirational

पापा - आपका शुक्रिया

पापा - आपका शुक्रिया

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पापा, वो दरख्त बनने के लिए शुक्रिया,

जिस दरख्त के सहारे मैंने

बचपन की टहनियां चढ़ी,

हजार बार उन टहनियों पर कूदते फांदते,

कभी ये नहीं सोचा था कि कौन संभालेगा।

जानती हूँ, अनगिनत पत्तों की

जमीनी चादर बिछा रखी है

खुद पर पतझड़ सजा रखी है।


पापा, वो नाव बनने के लिए शुक्रिया,

जिसने बचपन की

अठखेलियों की लहरें दिखा दी,

जिम्मेदार बना कर हाथ में पतवार थमा दी।

खुद किनारे लग गए कि लौट सकूंँ मैं,

फिर से कह सकूँ,

माँ, ये नहीं खाना कुछ और बना दो।

आ जाओ न रात हुई कोई किस्सा सुना दो।


पापा, वो किताब बनने के लिए शुक्रिया,

जिसमें मैंने जीव विज्ञान नहीं,

जीवन के शब्द पढे,

जीवन का ज्ञान सीखा।

गणित का शून्य नहीं,

सन्नाटे से उभरना सीखा।

सीखा कैसे जिम्मेदारी की मुंडेर से झांकते,

हर गुज़रती खुशी पर है पैर थिरकाए जाते।


पापा, जिंदगी की आपाधापी में

तुमने कितना कुछ खोया,

न जाने कितनी तकलीफें सही,

कई बार सोचा होगा,

मैं अब रोया मैं अब रोया।


चल दिए फिर से अपने आप को जोड़ कर,

चौबीस घंटे में अड़तालीस घंटे के काम ओढ़ कर,

क्या कभी सोचा कि खुद को बुखार चढ़ा लूँ ?

क्या कभी सोचा कि और एक घंटा नींद बढ़ा लूँ ?


क्या कभी सोचा कि एक दिन अपने लिए जिऊँ ?

कोई चाह सबसे पहले अपनी पूरी करूँ?

जब कभी काम से लौटे और मैंने कहा-

पापा, मम्मी ने नई फ्राक दिलाई,

क्या कभी सोचा थोड़ी तारीफ़ मैं भी लूँ ?

जब कहा पापा, मम्मी घुमा के लाई -

तो क्यों नहीं कहा

अपना पसीना बेचकर तुम्हें खुशियां देता हूँ।


जानती हूँ कि हर समय हर हाल में मेरे साथ हो तुम

तुम्हे खोने के विचार से सिहरती हूँ

पापा तुम्हें कह नहीं पाती,

हर शुक्रिया से ज्यादा तुम्हें प्यार करती हूँ।


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