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Manju Saini

Abstract

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Manju Saini

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रहूं सजदे में

रहूं सजदे में

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रहूँ सजदे में अपनी लेखनी के

क्योंकि मेरी कलम को अब भी 

तलाश स्याही की जारी है कुछ लिखने को

शब्द शब्द लिखती रही सजदे में तेरे

दिल मे उठे जज्बात को लिखा शब्दो मे।


रहूँ सजदे में अपनी लेखनी के

सोचती थी,चलती थी,कह देती थी

जब त

ुम पढोगे ,समझोगे,कह पाओगे

पत्रों पर शब्द शब्द उकेरे मेरी लेखनी ने

अपने दिल से लिखे सारे जज्बात।


रहूँ सजदे में अपनी लेखनी के

मेरी बेसब्र कलम लिखती है व्यथा

कुछ बोल कर,कह कर बता पाऊँ

चलते चलते ही सही पर चलती है लेखनी

तुम ना आए मेरे भाव को पढ़ने।



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