The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
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Mohit shrivastava

Abstract

4.5  

Mohit shrivastava

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ख़्वाहिश

ख़्वाहिश

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न ऊँचायी न गहरायी बना,

न लफ़्ज़, न अल्फ़ाज़ बना,

न दीया बना मुझे न रोशन

कर मंदिर के आलों में,

मुझे वो नूर बख़्श

फुटपाथ के किसी बल्ब सा,

कि ग़रीबों के बच्चे पढ़

सकें मेरे उजालों में।


न निज़ाम न सरकार बना,

न कर मशहूरन, न असरदार बना,

न परवाज़ हो मेरी आसमानों में,

न बादलों की दुनिया हो ख़यालों में।

लिखो लकीरों में नसीब मेरा,

उस अदद एक तिनके सा,

कि परिंदा जिसे कोई चुन ले

आशियाने में अपने

और शकुन पाऊँ मैं ज़िंदगी से भरे

किसी बूढ़े दरख्त की डालों में।

कि ग़रीबों के बच्चे पढ़

सकें मेरे उजालों में।


न शफक तक हो सफ़र मेरा,

न सितारों में बसर मेरा।

न समुन्दर चुनूँ,

न किनारे बनूँ,

न धूप बनके खिलूँ,

न बिखरूँ बनके चाँदनी।

न बहना मुझे हवाओं सा,

न खिलना मुझे बहारों सा।


न जवाब बना मुझे इस दुनिया के सवालों में,

मुझे तेरी रहमत दे और बना दे

मोहब्बत से भरा एक छोटा सा दिल,

इन ख़ून बहाने वालों में,

नफ़रत फैलाने वालों में।

कि ग़रीबों के बच्चे

पढ़ सकें मेरे उजालों में।


न रंग बनकर

छिटकूँ केनवासों में,

न ख़ुशबू बनकर महकूँ

किसी की साँसों में,

न मंदिर की दहलीज़ बनूँ,

न मस्जिद की चौखट बनूँ।


न कुराने पाक का सफ़ा,

न आयत कोई,

न गीता का श्लोक,

न रामायण की चौपायी कोई,

न नवाज़ मुझे इस ख़िताब से

तेरा बुत बनू और

बंद रहूँ मंदिर के तालों में,


मुझे वो बख़्त दे, ये बख़्शीश दे,

कि मरहम बनूँ, महका करूँ

इन मेहनतकश मज़दूरों के

हाथों के छालों में।

कि ग़रीबों के बच्चे पढ़

सकें मेरे उजालों में।


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