गुज़रा ज़माना!
गुज़रा ज़माना!
जाने कहाॅं बीत गया वाे जमाना
थाेडा राेना, थाेडा मुस्कुराना
वो हर पल, हर लम्हा, तेरा, तेरे साथ।
याद है तुझे???
सायकिल के केरियर पर बैठाकर मुझे घुमाना मेरी चिट्ठियाँ उस तक पहुँचाना
क्लास में बेंच रोकना
कितना हाथ से छुपाकर लिखती थीं न लड़कियाँ टेस्ट में,
फिर भी टीप मारना और मुझे लिखवाना
यार वो तुलसीदास की जीवनी में जन्म की तारीख़ और एप्लिकेशन में ओबेडेंटली की स्पेलिंग भूल जाना,
याद है मँथ्स कि क्लास में हिस्ट्री लेके जाना और वो शिखा से कहना! ह्ह्ह्ह्ह्ह 'ज़रा पेन देना'
बसोदा शहर की तंग गलियों में, मेलों में, बाज़ारों में, रहड़ी वालों खोमचे वालों और समोसे वालों से मोल पूछना,
ढाई रुपए तेरे, एक रुपया मेरा... हिसाब लगाना, दावत में जाकर, जूतों को छिपाना,
रायते वाले को आता देख कर जल्दी-जल्दी रायता पीना,
रसगुल्ला आख़िर तक बचाना, पत्तल में से सींकें निकाल कर आना,
लिफ़ाफ़े के ग्यारह रुपय बिना दिए निकल जाना,
घर जब भी एक दूसरे के जाना! पापा और मम्मी के सामने शराफ़त की मूरत बन जाना,
एक-दूसरे की अटेंडेंस लगवाना और कभी कभी अटेंडेंस का नम्बर ही भूल जाना
वो याद है ?
दसवीं के बाद जोश में आकर ग्यारहवीं में मॅथ्स लेना
और फिर फैल होकर अगले साल फिर से आर्ट्स लेकर पढ़ना,
खिड़की से कूदकर आना-जाना, परीक्षा के समय वो एक पैर पर एक-एक भगवान के सामने अगरबत्ती लगाना,
और सप्लिमेंट्री आ जाने पर सोचना कौनसे भगवान को भूल गए मनाना!
मेरी वाली के साथ तेरा घूमना,
मेरा ग़ुस्से में तुझसे रूठकर अनबोला हो जाना।
लाल, पीली हरी आइसक्रीम, सोनपपड़ी, पैठा, कवीट को देखकर जी ललचाना
और सोचना कि बड़े होकर इन्हें मन भर कर है खाना।
जाने कहाँ ही बीत गया वो ज़माना!
थोड़ा रोना, थोड़ा मुस्कुराना!