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Mohit shrivastava

Others

5.0  

Mohit shrivastava

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वो एक दीये की रात

वो एक दीये की रात

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फिर वो एक दीये की रात जागती सी रह गयी,

फिर वो एक मुख़्तसर सी बात काँपती सी रह गयी।


दिलों से दिलों की दूरियाँ कुछ ज़्यादा तो न थी,

ये दुनिया मगर फ़ासले नापती सी रह गयी।


अम्माँ के सब ज़ेवर बेचकर ख़रीद तो लाया डिग्रियाँ,

मैं नौकरी खोजता रह गया, वो खाट पर पड़ी खाँसती सी रह गयी।


फ़र्ज़, आरज़ू, तमन्नाएँ किसी साहूकार की तरह तक़ाज़ा करते रह गये,

ज़िंदगी किसी क़र्ज़दार की तरह मोहलत माँगती सी रह गयी।


फिर वो एक दीये की रात जागती सी रह गयी,

फिर वो एक मुख़्तसर सी बात काँपती सी रह गयी।


 


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