STORYMIRROR

Gulshan Sharma

Abstract

4.3  

Gulshan Sharma

Abstract

वो खाली कमरा

वो खाली कमरा

1 min
814


वो खाली कमरा,

मुझे पूरी तरह जानता है,

उसने मेरे अंदर का लेखक देखा है,

अभिनेता देखा है, गायक देखा है,


उसने देखे हैं मेरे आंसू जो

शायद ही किसी और ने देखे हों,

उसने देखी है मेरी सच्ची मुस्कान,

वो श्मशान हुआ है

मेरी मुर्दा उम्मीदों के लिए,


उसने देखा है मेरा झाड़

देना सारी आशाओं को,

सारी ज़िम्मेदारियों को, जिनका बोझ,

मैं पूरी दुनिया में उठाये फ़िरता हूँ,


जिनको बिठा आता हूँ मैं

उसकी दहलीज़ पर ही,

उसने मेरा बेबाक होना,

मेरा आत्मविश्वास देखा है,


उसने देखा है मुझे मेरी कमियों,

मेरे घावों को अपनाते हुए,

जिन्हें मैं दुनिया जग से छिपा लेता हूँ,

उसने मेर

ा प्रेम देखा है,


वो खाली कमरा जिसमें मैं

नहीं चाहता की कोई और जाए,

मुझे डर है उसमें छुपी मेरी

महक मेरी चुगली औरों से कर देगी,

वो खाली कमरा जिसमें

मेरे ख्याल आज़ाद उड़ते हैं,


कैदी हो जाते हैं,

तुम्हारी आशाओं के बोझ तले,

जब तुम उसमें कदम रखते हो,

फ़िर मैं वैसा ही बनने

का नाटक करता हूँ,

जो किरदार तुम मुझे

निभाते देखना चाहते हो,


वो कमरा भी तब मुझसे

अनजान सा व्यवहार करता है,

और सच कहूँ तो तब

दम घुटने लगता है,

जैसे मेरे हिस्से की हवा

कोई और चूस रहा हो,


सुनो,

उस कमरे को खाली ही रहने देना,

वो खाली कमरा,

मुझे पूरी तरह जानता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract