प्रेम पहेली ?
प्रेम पहेली ?
प्रेम क्या है
यह कैसा होता है
कैसा दिखता है
क्या यह होता है
की नहीं भी होता है
और अगर होता है तो
दिखता क्यों नहीं है
क्या यह हवा की तरह है
पारदर्शी है
पारभाषी है
अपारदर्शी है
या खुशबू की तरह है
जो रोम रोम और
आत्मा को
महकाता है
प्रेम पहेली क्यों है
पहेली भी है तो
अबूझ क्यों है
यह सिर्फ प्रश्न हीं क्यों है
उत्तर क्यों नहीं हैं
यह समझ से
परे क्यों होता है
प्यार का अगर अपना
वजूद है तो फिर
यह मुखर क्यों नहीं होता
संकुचित क्यों रहता है
सिर्फ महसूस हीं क्यों होता है
क्या प्रेम आकर्षण और
मस्ती के गर्भ से पैदा होता है
या फिर दया के गर्भ से
या फिर जूनून जोश का हीं
पर्याय है प्रेम
प्रेम कब कैसे कहां
किस जगह पर
हो जाए पता हीं नहीं चलता
किससे हो जाए ये भी
पता नहीं चल पाता
बिन पैमाने का है प्रेम
सजीव से भी हो जाए
निर्जीव से भी हो जाए
कभी पहली नजर में हो जाए
तों कभी बारंबार में भी न उपजे
कभी काली पर आ जाए
तो कभी गोरी पर भी न निकले
ये सत्य है कि
नफरत के गर्भ में
प्रेम कभी भी नहीं पनपते
संबंधों को जोड़े रहने का
सबसे मजबूत गम है प्रेम
खुश रहने का अचूक और
कारगर दवा है प्रेम
जीवन को आनंदमई बनाने का
अमूर्त साधन है प्रेम
फिर भी पूरी तरह से
अबूझ पहेली है प्रेम।
