एक पियानो भी होना चाहिए
एक पियानो भी होना चाहिए
घरों में खुुदाओं का होना ही
फ़क़त काफी नहीं
अगरबत्तियों के धुंए भी
घुटन कर सकते हैं।
घण्टियों की आवाजें भी
चिढ़ा सकती है किसी को
हाथों में सेलफोन ले कर
हजारों ट्वीट करने वाले लोग
दिमाग के मरीज भी हो सकते हैं।
और पूरे दिन न्यूज सुनने वाले
सच में भिड़ने और झगड़ने के आदी,
वो जो हर वक्त
लोहे की मशीनें ले कर
फुला रहा है ना अपनी नसों को
उसमें खून की जगह गुस्सा बह रहा है
और जिसने फ़क़त एक कमरे को
अपना घर बना लिया है।
ढूँढो ! उसी कमरे के नीचे
एक सुरंग है जिसमें
शरीर के निचले हिस्सों के पानी की
फिसलन और कपड़ो पर लगे हुए
रंगीन दाग का अंधेरा
ले जाता है माजी के खंडहर में।
क्यूँ न उस कमरें में
लगा दी जाए एक शेल्फ
और भर दी जाए बीसियों किताबें
कि जब भी वो अकेला चीखना चाहे
तो किसी किताब का कोई लफ्ज़
उसके मौन को भी विस्फोट कर दे।
क्यूँ न इक स्केचबोर्ड टंगा दे कोई
कि जब भी यादें खटखटाये
जेहन का दरवाजा
रंग उड़ेल दे सफेद कागज पर
और तस्वीरें बोलने लगे।
टेबिल पर रखी होनी चाहिये
एक अधखुली डायरी और पूरी भरी पेन
कि जब भी मन हो शराब पी कर
गालियां देने का,
गालियां. नज़्म की पैकेट में भी
भरी जा सकती है
ताने, सलीके से भी दिए जा सकते हैं,
और सर्दरातों का वो वक्त
जब उंगलियां घूमनी चाहती है
नर्म जगहों पर,
साँसें सुनना चाहती हो
एक ही आवाज में बीसियों धुन
तब हरेक बिस्तर के पास
एक पियानो भी होना चाहिये।