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Radha Shrotriya

Abstract

4.4  

Radha Shrotriya

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गणित के सवाल सी जिंदगी

गणित के सवाल सी जिंदगी

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जिंदगी भी गणित के सवाल की तरह उलझ कर रह गई है

एक सवाल हल किया नहीं कि दूसरा तैयार ! 

जैसे स्कूल में गणित के पीरियड में जरा सा सवाल

गलत हुआ नहीं कि मास्टर जी का डंडा तैयार रहता था !


आज जिंदगी मास्टर बनी हुई है

रात नींद से बोझिल आँखों से सपने टूट कर झड़ जाते हैं

 सवालों के जवाब खोजने में कब रात

बीत जाती है पता ही नहीं चलता !


सुबह जब हड़बड़ाकर नींद खुलती है

सवालों की एक लंबी सी लिस्ट सामने होती है,

दिन इन सवालो की गुत्थी सुलझाने में गुज़र जाता है ! 

हँसी, खुशी किस चिड़िया का नाम है,

सोचने की फुर्सत ही नहीं मिलती ! 


आइने मैं अपना ही चेहरा अब मुँह चिढ़ाता नज़र आता है

बालों से झाँकती चाँदनी चोंका सी देती है!

क्या पाया क्या खोया सोचने बैठी, तो...खोया ही याद आया!

हर रिश्ते ने सिर्फ़ लिया ही लिया.. 


हर रिश्ते में से परायेपन की सी बू आने लगी है, 

अपने पन की धूप कहीं सिमट सी गयी है खैर

अपनों को वक़्त देने की खुशी भी

किसी नशे से कम नहीं होती !


प्यार, मोहब्बत के नाम से ऊब होने लगी है

जैसे नमी से कपड़ों में फफूंद सी लग जाती है..!

झूठ का बोझ अब और ढोया नहीं जाता !

अनगिनत सपने जो पलकों पे सजना चाहते हैं,

अब उन्हें संवारना है !

 

अपने रंग में तुझे रंगना है जिंदगी !

गणित के सवालों से डरना छोड़ दिया है मैंने 

तेरे हर सवाल का जवाब देना बाकी है अभी,

 जिंदगी तेरा कर्ज़ चुकाना बाकी है अभी।


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