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Radha Shrotriya

Others

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यादों की बौछारें

यादों की बौछारें

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यादों की बौछारें 

यादों की बौछारें जब बरसती हैं, मन का कोना कोना भीग जाता है!

समझदारी का चश्मा लाख चढ़ा लो 

सब से छुपा लो आंखों की नमी

पर मन कहां मानता है...

मन के वेग को रोकना मुश्किल होता है!

अंतस में किलक सी उठती है

मेरे अंदर की नन्ही सी बच्ची मचल उठती है

वो आज भी भीजना चाहती है मां के प्यार की बारिश में..

लिपटना चाहती है मां के आंचल में!

आज भी महकती है मेरी हथेलियों में

तीज पर ना चाहते हुए भी भाई का शगुन कहकर 

मां के हाथों से लगाई हुई मेहंदी!

मेहंदी बिगड़ ना जाए 

इसलिए पिता के हाथों से खिलाये हुए घेवर के कौर!

रस्सी का झूला, 

जिसमें लकड़ी की पटली इतनी हिफाज़त से लगाई जाती कि कहीं वह पलट ना जाए।

छोटी-छोटी बातों पर की गई मान मनुहार 

मां की डिक्शनरी में ना तो होता ही नहीं था !

चाहती हूं कि बरस जाए इस बरस सालों से आंखों में जमा है जो बारिशों का पानी 

मां के स्नेहिल स्पर्श से मेरा तन मन भीग जाये !


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