STORYMIRROR

Shashi Aswal

Abstract

5  

Shashi Aswal

Abstract

खामोशियाँ सुनाई देने लगी

खामोशियाँ सुनाई देने लगी

2 mins
1.0K

आ गए वापिस 

फिर से मेरे पास 

क्या काम है बोलो 

तभी आए हो इधर 


वरना तुम्हें क्या 

पड़ी है मेरी 

मरूं या जियूँ 

हँसू या रोयूँ 

तुम्हें तो कोई 

फर्क ही नहीं पड़ता 


जाओ वापिस वही 

जहाँ से आए हो 

यहाँ कोई नहीं 

तुम्हारा अपना कोई 


तुम्हारे लिए तो 

वो ही जरूरी है न 

सुबह, दिन, शाम 

और रात 

24 घंटे वही बस 

बाकि तो कोई है 

ही नहीं इस दुनियाँ में 


कोई मरता है 

तो मरे 

तुम्हें क्या 

वो तो जिंदा है न 


बस दुनियादारी जाए 

भाड़ में 

बस अपना काम बनता 

क्या चाहिए अब 

जल्दी बताओ 

और भी काम है मुझे 


वो अभी तक खड़ा 

बस सब नौटंकी 

देख रहा था 

कनखियों से 

अंदर से मुस्करा 

रहा था उसके 

बड़बोलेपन पर 


उसे वो दिन फिर से 

याद आ जाते है 

जब वो कॉलेज में 

पढ़ता था 


स्वपना के बड़बोलेपन से 

उसे बहुत चिढ़ मचती थी 

उसके साथ वो दो मिनट 

तो क्या एक क्षण भी नहीं 

बीता सकता था 


मगर जब उसे उसके 

अकेलेपन का पता चला 

तब से उसे उसके 

बड़बोलेपन में 

खामोशियाँ सुनाई देने लगी 

वो दर्द महसूस होने लगा 

जो वो सबसे छिपाती 

फिरती थी 


तब से उसे उसकी 

लत सी लग गई 

एक क्षण उसके 

सामने न बैठने वाला 

घंटों उसकी बात 

सुनता रहता था 


उसके फिर से 

सामने आने पर 

वो यादों से निकला 

वो मुँह फुलाए खड़ी थी 


अरे दोस्तों के साथ था 

काम की बात चल रही थी 

तो समय लग गया 

और मेरे फोन की 

बैटरी भी खत्म हो गई थी 

इसलिए फोन भी नहीं कर पाया 


और बाकि फोन 

मर गए थे क्या 

पता है मैं दिन से 

इंतजार कर रही 

कि अब आए खाना खाने 

पर नहीं जनाब व्यस्त थे 

दोस्तों के साथ 


अरे बाबा, कहा न 

दोस्तों के साथ था 

ये लो मैंने अपने कान 

भी पकड़ लिए 

आगे से ऐसा नहीं होगा 


हर बार ऐसे ही कहते 

रहते हो 

फिर वैसे ही हो जाते हो 

तुम्हें तो मेरी फिक्र ही नहीं है 

क्या इसलिए ही 

शादी की मुझसे 


नहीं, नहीं 

कहा न सॉरी 

कान पकड़ कर 

आगे से ऐसा 

नहीं होगा 

तुम कहो तो 

आगे से तुम्हें 

भी अपने साथ 

ले चलूँगा 

अब खुश तुम 


और क्यूँ नहीं है 

मुझे तुम्हारी फिक्र 

जो भी कर रहा हूँ 

तुम्हारे लिए ही तो 

कर रहा हूँ मैं 

तुम्हें खुश रखने के लिए 

ही तो शादी की थी तुमसे 

है न ? उसने आँखों को 

लगातार झपकाते हुए कहा 


कितनी बार कहा है 

ये ऐसे करके आँखें 

मुझे मत दिखाया करो 

लड़कियाँ मरती होगी 

तुम्हारी इस हरकत पर 

मैं नहीं! उसने आँखों को 

बड़ा करके दिखावटी 

गुस्से में कहा 


हम्म ! तुम क्यूँ मरोगी 

मुझ पर 

आखिर तुम तो 

पत्नी हो मेरी 

मरता तो मैं हूँ 

तुम पर 


अभी तक जो बाकि 

रह गया था पिघलना 

उसकी इन बातों से 

वो दीवार भी पिघल गई 

अब आँखों में गुस्सा नहीं 

प्यार बरस रहा था 

चलो आओ खाना खा लो 

भूख लग गई होगी तुम्हें 


हाँ, भूख तो लग रही है मुझे 

दिन से कुछ नहीं खाया 

पहले ये बताओ 

तुमने मुझे माफ 

कर दिया न? 


हम्म! सोचना पड़ेगा 

मेरे भोलू 

आओ खाना खाते है 

खाना लगा दिया है मैंने 


भोलू? अब ये कहाँ 

से आ गया 

जब भी देखो मुझे 

नया नाम दे देती हो 


हाँ और क्या 

सुबह का भुला 

अगर शाम को 

वापिस आ जाए 

तो उसे भुला नहीं कहते 

इसलिए मैंने तुम्हारा नाम 

भोलू रख दिया 

खिलखिलाते हुए 


अच्छा बाबा चलो 

खाना खाते है 

पेट में चूहे कूद 

रहे है मेरे कब से

और वो दोनों 

बैठ जाते हैं 

खाना खाने।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract