The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
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Ajay Singla

Abstract

4.0  

Ajay Singla

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रामायन-१३;राम सीता विवाह

रामायन-१३;राम सीता विवाह

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जनक प्रणाम किया विश्वामित्र को

मेरे लिए क्या आदेश है अब

मुनि बोले संपन्न हुआ विवाह

ये शिव धनुष टूटा था जब।


सारी तैयारी शुरू करो तुम

अयोध्या से दशरथ बुलवाओ

लगन पत्रिका दे भेजा दूतों को

और बोला अयोध्या तुम जाओ।


पत्रिका बाँचि  दशरथ ने जब 

हर्षित हुए सभी सभागन

घर आए सब को बतलाया 

माताओं, भाईओं का पुलकित मन।


अगले दिन बारात चली थी जब 

ढोल नगाड़े बज रहे जहाँ तहाँ

दशरथ और वशिष्ठ रथों पर थे 

शगुन सब मंगल हो रहे वहां।


 बारातियों ,अगवानों का मिलन हुआ

बधाईयां दीं , सब गले मिले

लिवा लाये उनको जनकपुर

प्रसन्न थे सब, चेहरे थे खिले।


राम और लक्ष्मण ने सुना था जब 

सोचा, पिता से मिलने जाएँ

मुनि ले आए दशरथ के पास

नयनों में थे आंसू आए।


दोनों ने प्रणाम किया पिता को

गुरु वशिष्ठ के उन्होंने चरण छुए

भरत, शत्रुघ्न भी थे वहां पर

मिले सभी, प्रसन्न हुए।


दशरथ चारों पुत्रों सहित 

शोभायमान वो थे ऐसे

अर्थ धर्म काम और मोक्ष ने

शरीर धारण किया हो जैसे।


स्त्रियां बोली भरत जी तो

राम का दूजा रूप है ये 

और शत्रुघ्न लगते ऐसे 

लक्ष्मण का लिया स्वरुप हैं ये 


सोचें अगर ये चारों का

व्याह इसी नगर में  हो जाये

बार बार दर्शन फिर हम पाएं

 हमारा जन्म सफल तब हो जाये।


लगन का दिन जिस तिथि का था

ग्रह योग श्रेष्ठ, महीना अगहन

सुहागिनें गीत मंगल गाएं 

और नाचें गाएँ मिलकर सभी जन।


सब देव विमानों से आए 

महिमा श्री रामचंद्र की जान

घोड़े पर बैठे लगें सुँदर

दर्शन पाकर, धन्य रहे मान।


ब्रह्मा के आठ नेत्र हैं

पंद्रह नेत्र शिवशंकर के

बारह नेत्रों वाले कार्तिकेय

और सौ नेत्र हैं इंद्र के।


इन सभी से निहारें प्रभु को

और राम की जय जयकार करें

मंगलगान गाने को तब 

उमा और लक्ष्मी, स्त्री रूप धरें।


सुनयना, माता जी सीता कीं

वर वेश में राम को देख रहीं

मन में उनके था अपार सुख

आँखों से अश्रु धारा बही।


ये विवाह रस्म देखने को

ब्रह्मा विष्णु शिव, बने ब्राह्मण

 राम ने ही उनको पहचाना

नमस्कार किया उन्हें मन ही मन।


वशिष्ठ बोले शतानन्द से

अब बुलवाओ सीता जी को

सखियां ले आईं मंडप में

वर्णन न हो शोभा थी जो।


जनक और सुनयना ने मिलकर

धोये थे तब श्री राम चरण

जनक जी कन्यादान किया

और हुआ था तब पाणिग्रहण। 


जनक के भाई कुशध्वज की

बेटी मांडवी और श्रुतिकीर्ति

और राजकुमारी उर्मिला जी

छोटी बहन थी सीता की।


मांडवी का व्याह हुआ भरत जी से

उर्मिला जी के हुए लक्ष्मण

श्रुतिकीर्ति को मिले शत्रुघ्न

विवाह सबका हुआ संपन्न।


देवता योगी मुनियों सब ने

फूलों की वर्षा तब थी की  

सब आशीर्वाद देने लगे

हर मन में खुशीयां भर दी थीं।  


अगले दिन सुबह उठ कर

दशरथ ब्राह्मणों को गौ दान दिया

विदा जनक से वो मांगें हर दिन

जनक ने पर जाने न दिया।


बहुत दिन जब बीत गए

समझाएं उनको शतानन्द जी

कहें जनक को ,जाने की आज्ञा दो

भारी मन से उन्होंने हाँ कर दी।


विदाई का जब समय आया

सीता जी और वधुएं सारी 

गले मिलीं माता और सखियाँ

आँखों में आंसू, मन भारी।


माताएं आशीर्वाद देतीं

पति परमेश्वर हैं , ये समझातीं

सखियां भी कुछ सीख देतीं

स्त्री धर्म वो उनको बतलातीं।


जब पहुंचे पिता जनक थे वहां

नेत्रों में जल था भर आया

उन चारों राजकुमारियों को

पालकियों में बिठलाया।


आर्शीवाद सबसे लेकर

अयोध्या की तरफ प्रस्थान किया

नगरी के बाहर जब पहुंचे

संदेशा राजमहल में गया।


माताएं ख़ुशी से झूम उठीं

सजाएँ वो परछन का सामान

जब राजद्वार पहुंची बारात

अलग ही थी तब उसकी शान।


उतारी आरती माताओं ने

राजमहल में जब प्रवेश किया

वर वधुओं ने थे पैर छुए

आशीर्वाद सबसे था लिया।


खिलाया ब्राह्मणों को था भोजन

सबको उचित दिया था दान

गुरु और साथी सगे सम्बन्धी 

सबको दिया पूरा सम्मान।


विश्वामित्र विदा लेते हैं अब

मुनि वशिष्ठ भी चलने को तैयार

प्रभु मूरत देख कर देवता

अयोध्या में रहे, ये करें विचार।


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