विष्णु काव्य
विष्णु काव्य


कौन है बड़ा ब्रह्मा या महेश
विष्णु का है विराट वेश
सबसे बड़े है प्रभु नारायण
जो हैं कर्तव्यपरायण
करते है सृष्टि का पालन हरी
पूजते है उन्हें सभी नर नारी
सृष्टि पालक के प्रति हम आभारी
उनके नियंत्रण में है दुनिया सारी
बद्रीनाथ है उनके लिए विशेष
जिनमे है हरी भक्ति विशेष
परमपवित्र है वो व्यक्ति विशेष
मिटाता है वो दुनिया से क्लेश
उनके है दस अवतार
पहला है मत्स्य अवतार
दूसरा है कूर्म अवतार
तीसरा वराह अवतार
चौथा है सर्वप्रिय
भक्त प्रह्लाद थे उनके प्रिय
खम्भे से स्वयं को प्रकट किया
हिरण्यकशिपु का वध किया
पांचवा है वामन अवतार
छटा है परशुराम अवतार
सातवें के बारे में क्या कहूँ
वो है प्रिय राम प्रभु
पिता दशरथ माता कौसल्या
भाई लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न
पत्नी है माता सिया
सेवा भावी प्रिय है हनुमान
रावण का वध किया
धरती को पापमुक्त किया
राम राज्य स्थापित किया
प्रजा का भला किया
आठवें है कृष्ण अवतारी
गीता के लिए हम उनके आभारी
अर्जुन को दिया सही उपदेश
युद्ध में पांडव ही थे शेष
नौवा है बुद्ध अवतार
जिन्होंने कम उम्र में त्यागा संसार
बने वे संत महान
कदमो में झुकता है सारा जहाँ
दसवाँ होगा कल्कि अवतार
जो होगा अश्व पे सवार
हाथों में होगी जिनके तलवार
हम जिनका कर रहे इंतज़ार
विष्णु से है जीवन मेरा
विष्णु से होता है प्रकाश जाता है अंधेरा
विष्णु बसे है कण कण में
हर कण में हर मन में
सर्व प्रिय है मेरे नाथ
जिनके ह्रदय में है दिन अनाथ
जिनका है इस जगत पे नियंत्रण
उन्हें देना है भक्तिपूर्ण आमंत्रण
नहीं रहेगा कोई दुःख कोई क्लेश
और नहीं रहेगा कोई राग द्वेष
न रहे कोई दर्द भी शेष
विष्णु है जिसके लिए विशेष
नैया पार लगेगी तब
हरी नाम जपेगा जब
मोक्ष भी मिलेगा तब
हरी धुन लगेगी जब
होगा बड़ा चमत्कार
जब जाऊँगा हरिद्वार
खुलेंगे स्वर्ग और मोक्ष के द्वार
मिलेगा मुझे सुख अपार
गंगा में जब करूँगा स्नान
जहाँ किया संतों ने ध्यान
पा जाऊँगा हरी चरणों में स्थान
भक्ति कर बनूँ महान
जब इस दुनिया से लूँगा विदाई
बड़ी होगी मेरी बड़ाई
मोक्ष से होगी सगाई
नहीं होगी कभी हरी से जुदाई