गणेश काव्य
गणेश काव्य
मेरे प्यारे प्रभु
जहाँ से निराले प्रभु
सबकी प्रार्थनाएँ सुनते हैं
सबकी इच्छाओं को पूरी करते हैं
अगर तुम्हारी इच्छा रह गयी अधूरी
और नहीं हुई अगर पूरी
तो कर लो भक्ति आधी अधूरी
मिल जाएगी भक्ति पूरी
गणेश इस पृथ्वी पर लेते हैं अवतार
और सुन लेते हैं सबकी पुकार
कर देते हैं सब पे उपकार
बस, पुकारो बारम्बार
जाओ जहाँ जाना चाहते हो भक्तों
पर लौट आओ वापस भक्तों
अगर गए तुम काशी भक्तों
तो पाओगे शिव को भक्तों
अगर तुम गए हरिद्वार
तो पाओगे वैकुण्ठ का द्वार
गए अगर वैष्णो देवी
मिलेगी महामाया महादेवी
पर जाना तुम वहाँ
जहाँ स्थापित हो गजानन
बड़ी शांति तुम पाओगे
अगर गणेश भक्ति कर जाओगे
तो कर लो गणेश की भक्ति
पा जाओगे सारी शक्ति
मिल जाएगी परम शांति
होगी जगत में भक्ति क्रांति
गणेश की है ये कहानी
जो है संतों की जुबानी
माँ पार्वती ने बनाया उन्हें
मैल से बनाया उन्हें
जीवित हुए गौरीनंदन
धरती को किया बड़ा पावन
माँ ने दिया आदेश यही
आना चाहिए कोई भी नहीं
सुन आदेश माँ पार्वती का
रक्षक बन गए विनायका
आ गए शिव उस द्वारपाल के पास
नहीं जा पाए माँ पार्वती के पास
जाना इस बालक में है कुछ खास
होने लगा युद्ध का आभास
शिव ने कहा बार-बार
जाने दे मुझे उस पार
गणेश मना करे बार-बार
हो गए शिव युद्ध के लिए तैयार
गणेश ने किया स्वीकार
हो गए युद्ध के लिए तैयार
होने लगा युद्ध भीषण
कट गया मस्तक उसी क्षण
होने लगी जय जय कार
शिव खुश हो रहे बारम्बार
शिव ने देखा द्वार पर
माँ पार्वती आ रही है वहाँ पर
सुनाई युद्ध में विजय की खबर
ममतामई माँ बिलख रही सुनकर
पुत्र वियोग का देख रही मंजर
उठाई शिव की और नजर
कहा, पुत्र था यह हमारा
जो था हमारी आँखों का तारा
इसपे बहानी थी प्रेम की धारा
क्यों बहा दी रक्त की धारा
देख रही वो कटी काया
क्रोधित हुई परम महामाया
जानकर अपना पुत्र खोया
पार्वती ने अपना आपा खोया
शक्ति की प्रकट सारी
जो पड़ने लगी सब पर भारी
आने लगा कैलाश पर प्रलय
होने लगा देवों में भय
शिव ने जाना जब यह
कि उनका ही पुत्र था यह
शिव ने किया पश्चाताप तुरंत
गणों को दिया आदेश तुरंत
भेजा उनको मस्तक लाने
जो मिले पहले उसे लाने
लाये गण गज का मुख
किया उसे शिव के सम्मुख
शिव ने जोड़ा मुख को धड़ से
जो हुआ था अलग इस जीवन से
आत्मा का मिलन हुआ तन और मन से
फिर जुड़ाव हुआ इस जीवन से
धरा में अवतरित हुए गजानन
जिनका नाम था गणेश और शिव नंदन
दिए वरदान उन्हें सभी देवों ने
पूजनीय बना दिया उन्हें सभी ने
हो गए वो सर्वत्र पूजनीय
और हुए परम वंदनीय
बन गए वो गणनायक
परम पवित्र है विनायक
हुई गणेश की रिद्धि सिद्धि
फ़ैल रही चहूँ और प्रसिद्धि
सर्वप्रिय है उन्हें मोदक
बने वो सभी के लिए प्रेरक
वो हैं ओमकार रूपक
उनका वाहन बना मूषक
बड़े विद्वान् हैं वे लेखक
उनकी छवि है बड़ी आकर्षक
कार्तिकेय और गणेश ने ये ठाना
बड़ा कौन है ये आप बताना
ऐसा बोले वो माता-पिता से
कौन बड़ा है हम दोनों में से
माता पिता ने उन्हें बताया
जो प्रथम पृथ्वी की परिक्रमा कर आया
परम पूजनीय की पदवी वो पाया
हमसे उसने सब कुछ पाया
निकल गए कार्तिकेय घर से
पर गणेश वही खड़े थे चुप से
माता-पिता को प्रणाम किया
संसार जान उनका वंदन किया
लगे परिक्रमा करने शिव पार्वती की
होने लगी परिक्रमा पृथ्वी की
जब हुई पूरी परिक्रमा
पावन हुआ वो सारा समां
दिया आशीर्वाद माता पिता ने
पूरी करी है परिक्रमा तुमने
रहोगे सर्वप्रथम पूजित तुम
जीत गए ये प्रतियोगिता तुम।।