Vivek Netan

Drama

5.0  

Vivek Netan

Drama

लाइफ इन सिटी

लाइफ इन सिटी

1 min
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थकी - थकी - सी है यह बेज़ार ज़िंदगी

अब इसे थोड़े आराम की ज़रूरत है

पसीने - पसीने हो गई है जल - जल के

इसे ठंडी सुहानी शाम की ज़रूरत है !


अरसा हो गया है

अपनों से मिले हुए

फिर होली या दिवाली की ज़रूरत है !


अकेले हैं हम

हज़ारो की भीड़ में

हमसफर की नहीं

अब साथी की ज़रूरत है !


आवाज़ें तो रोज़ ही सुनता हूँ अपनों की

अब सामने बैठ के

बतियाने की ज़रूरत है !


"हेलो ! हाय !" - से अब सुकून मिलता ही नहीं

किसी से गले मिल के

रोने की ज़रूरत है !


थक जाता हूँ

दो रोटी कमाने के चक्कर में

कहीं दूर पहाड़ों में

भटक जाने की ज़रूरत है !


बस करवटें बदल - बदल के

गुज़रती है रात

लगता है फिर से

माँ की लोरी की ज़रूरत है !


किराए के मकान में

बिखरा हुआ सामान

फिर से छोटी बहन के

आने की ज़रूरत है !


क्या खाया, कब खाया, क्यों खाया

खबर नहीं !

लगता है फिर से

पापा की डांट की ज़रूरत है !


आते - जाते बस भीड़ का

समंदर ही समंदर

आज फिर गांव की

कच्ची सड़कों की ज़रूरत है !


कोई समझता नहीं

तो कोई समझाता नहीं

फिर पेड़ की नीचे लगी

चौपाल की ज़रूरत है !


ज़रूरतें ही ले आई थीं

मुझे अपनों से दूर

अब मुझे फिर से

अपनों की ही ज़रूरत है !


अब किस तरफ जाऊं

समझ आता ही नहीं

इस तरफ घर की

उस तरफ मेरी ज़रूरत है !


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