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Vivek Netan

Classics Fantasy

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Vivek Netan

Classics Fantasy

यह क्या हो गया

यह क्या हो गया

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आँखों का काजल कुछ ओऱ गहरा हो गया

उस कातिल का चेहरा ओर मासूम हो गया


देखा उसने ऐसी डबडबायी नजरो से मुझे

मैं अपनी शिकायतों पर ही शर्मिंदा हो गया


बजता था जो उसके पाओ में कभी छन छन

तकिये के नीचे पड़ा वो घुंघरू खामोश हो गया


सजे थे जो हाथ मेरे हाथों से एक अरसे तक

उन हाथों पे क्यों अब कंगन का पहरा हो गया


यह रिश्ते हो गये शिकार किस कसमकश के

मैं रोजेदार हुआ तो बो चाँद ईद को हो गया


ता उम्र चाहा था मैंने बड़ी शिद्दत से उन्हें

मैं गजल लिखता रहा और वो गालिब हो गया।


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