जमाने की नजर में
जमाने की नजर में
जमाने की नजर में मेरा चाल चलन अच्छा नहीं
यह अलग बात है के सस्ते में मैं बिकता नहीं
मैं तो वो राज भी सबके जेब में लिए घूमता हूँ
जो ज़माने को अपने अक्स में भी दिखता नहीं
कर रखा है मुझे जमाने ने कब से दर बदर
सच बोलता हूँ इसलिए कही मैं टिकता नहीं
मेरी बातें ना जाने कब ले आए इंकलाब यहां
मैं बस ख़ामोश रहता हूं बज्म में बोलता नहीं
ना माँगा किसी से ना कभी छिना झपटी की
लेकिन जो हक से मेरा है उसे मैं छोड़ता नहीं
कभी माफ किया तो कभी माफ़ी मांग ली
मैं आज में जीता हूँ गड़े हुए मुरदे खोदता नहीं!