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मिली साहा

Abstract Inspirational

5.0  

मिली साहा

Abstract Inspirational

क्या हम वास्तव में आज़ाद हैं

क्या हम वास्तव में आज़ाद हैं

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प्रतिवर्ष हम सब जश्न मनाते हैं आज़ादी का,

क्या वास्तविक अर्थ समझते हैं आज़ादी का,

आज़ादी कोई शब्द नहीं जो सिर्फ बोला जाए,

ये एक भाव है जो दिल से महसूस किया जाए,


आज़ादी का मतलब छुट्टी मनाना नहीं होता,

किसी और के विचारों को दबाना नहीं होता,

मन की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है,

स्वतंत्रता का अर्थ अधिकार हनन नहीं होता,


आज़ादी का अर्थ केवल ध्वज फहराना नहीं है,

इसके तीनों रंगो का महत्व समझना जरूरी है,

प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है हमारा तिरंगा,

फिर क्यों धर्म के नाम पर किया जाता है दंगा,


जात-पात के नाम पर कितनों के लहू बहाते हैं,

क्या एक दूजे से लड़ने को ही स्वतंत्रता कहते हैं,

वीरों की भूमि है ये कितनों ने बलिदान दिया था,

स्वतंत्रता का यह रूप होगा उन्होंने ना सोचा था,


सच्चाई का साथ देने को कोई होता नहीं तैयार,

झूठ की गोलियां खा-खाकर देश हो रहा बीमार,

सच्चाई बंद तहखाने में झूठ खुले आम घूम रहा,

फिर किस सच्चाई से आज़ादी का गीत गा रहा,


धर्म के नाम पर लड़वाते हैं यहां धर्म के ठेकेदार,

मासूम नौजवानों के हाथों में पकड़ा रहे हथियार,

आतंकवाद देश की अंतरात्मा को कर रहा खाली,

क्या इसी आज़ादी के लिए वो वीर चढ़ गए सूली,


बेगुनाहों को सजा, कसूरवार खुले आम घूम रहा,

दौलत, ताकत यहां पल-पल गरीबों को रौंद रहा,

गरीबों को इंसाफ नहीं दौलत में बिक जाते इंसान,

फिर भी हम आज़ादी का करते फिरते हैं गुणगान,


पग- पग पर नारी का जहां सम्मान हनन होता है,

रावण ही जहां स्वयं को नारी का रक्षक कहता है,

वहां कैसे चलेगी कोई नारी पूर्ण स्वतंत्रता के साथ,

जहां नारी स्वतंत्र नहीं वहां कैसी आज़ादी की बात,


छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में कलम की जगह औजार,

लिखने-पढ़ने की उम्र में मानसिकता हो रही बीमार,

कचरे के ढेर में रोंधती चली जाती बचपन की आशा,

क्या वास्तव में आज यही है आजादी की परिभाषा,


गुलामी की बेड़ियों को हमने कई वर्षों तक सहा है,

क्या होती गुलामी लंबे समय तक महसूस किया है,

फिर क्यों मूक प्राणियों को इंसान कैद कर देता है,

खुद को आज़ाद कहता और उन्हें गुलाम बनाता है,


जिस कीमत पे मिली आज़ादी वो चुका नहीं सकते,

क्योंकि आज़ादी जीवन है हम मोल लगा नहीं सकते,

तो किसी और की आज़ादी का कैसे मोल लगा रहे हैं,

आज़ादी का सही अर्थ हम क्यों नहीं समझ पा रहे हैं,


जिस दिन धर्म के नाम पर नहीं कोई ठेकेदारी होगी,

उस दिन हमें सही मायनों में आज़ादी मिल जाएगी,

जिस दिन बेखौफ यहां सम्मान से चलेगी हर नारी,

उस दिन हमें सही मायनों में आज़ादी मिल जाएगी,


दहेज की न बलि चढ़ेगी न होगी कोई अबला बेचारी,

उस दिन हमें सही मायनों में आज़ादी मिल जाएगी,

बाल मजदूरी में नहीं उजड़ेगी वो बचपन की क्यारी,

उस दिन हमें सही मायनों में आज़ादी मिल जाएगी


जब तक इंसान दिल से आज़ादी का मतलब नहीं समझेगा,

तब तक देश हमारा सही मायनों में आज़ाद नहीं हो पाएगा।



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