प्रथम नवरात्रि माँ शैलपुत्री
प्रथम नवरात्रि माँ शैलपुत्री
प्रथम दिवस नवरात्रि माता शैलपुत्री, स्वरूप की उपासना।
सौभाग्य, मौक्ष प्रदायिनी माता की करें हम सब आराधना।।
कथा पौराणिक सतयुग की सती पुत्री प्रजापति दक्ष की।
सभी देवता आमंत्रित दक्ष महल में, तैयारी पूरी यज्ञ की।।
केवल सती और भगवान शिव का नहीं यज्ञ में आमंत्रण।
किन्तु हठ कर बैठी सती क्या हुआ नहीं मिला निमंत्रण।।
पिता के घर जाने हेतु, आवश्यकता नहीं है निमंत्रण की।
सती के इस हठ के आगे एक न चली भगवान शिव की।।
आज्ञा पाकर शिव शंकर से सती पिता के घर तो आ गई।
किंतु पिता के मुख से पति का अपमान सती सह न पाई।।
सती के साथ हुआ बिन बुलाए मेहमानों के जैसा व्यवहार।
दक्
ष ने पुत्री सती सहित भगवान शिव का किया तिरस्कार।।
शब्द दक्ष के विष सामान सह न सकी वो पति का अपमान।
भस्म कर दिया तन अपना सती ने, अग्नि का कर आह्वान।।
भगवान शिव को मिली सूचना जब सती के आत्मदाह की।
क्रोधाग्नि प्रचलित हुई हृदय में, घड़ी आई दक्ष के अंत की।।
अगला जन्म हुआ सती का, हिमालय राज पुत्री बन आई।
पार्वती रूप में सती का जन्म हुआ, कहलाई वो शैलपुत्री।।
करुणा धैर्य इच्छा शक्ति की देवी शैलपुत्री का रूप निराला।
एक हाथ त्रिशूल दूजे कमल मुख पर लिए स्नेह का प्याला।।
पार्वती, उमा कहलाए, भगवान शिव की प्रिय अंबे भवानी।
जीवन है उधर उसका जिसने माँ स्वरूप की महिमा जानी।।