कविता
कविता
पूछ रहे हैं शुभचिंतक मेरे,
क्यों लिखती हो तुम कविता..
छोड़ अंकों की दुनियाँ जानें,
क्यों रचती नित नयी कविता..
हर क्षण को मैं लिखना चाहूँ,
गम और खुशी को रचना चाहूँ..
अंकों की दुनियाँ में चैन न था,
उस पथ पर न अब चलना चाहूँ..
अंतर्मन की हर प्रतिध्वनि पर,
कहना चाहूँ मैं सुमधुर कविता..
छोड़ कर अब अंकों की दुनियाँ,
हर रोज गढूं एक नयी कविता!