आज कल
आज कल
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आजकल थोड़ा थोड़ा सा थकने लगी हूँ मैं,
चलते चलते अचानक से कहीं रुकने लगी हूँ मैं..
परेशानियाँ तो मेरा पता पूछते नहीं थकतीं,
पर उनकी खुशामद करने से मुकरने लगी हूँ मैं..
बात- बात पर मुस्कुराने का अंदाज था जो बचपन से,
अब एक- दो मुस्कराहटों की भी गिनती करने लगी हूँ मैं...
कहते थे दोस्त हर बात कहने का अंदाज ही अलग मेरा,
अब सिर्फ अपने मन ही मन में बात करने लगी हूँ मैं...
पहले समय न था, कि खुद को गौर से देखूँ मैं आइने में,
अब समय तो है, पर उसी आइने से नजरें फेरने लगी हूँ मैं।