प्रभु कलयुग में तो ना आएंगे
प्रभु कलयुग में तो ना आएंगे
मंदिर भी खूब सज रहे,
शिवाला भी दम दम दमक रहे..
जगे प्राणशक्ति हर मूरत में,
दिखे जगदम्बा हर औरत में..
फिर भी वहशियों का दमन नहीं,
इस युग में ईश कर पाएंगे..
उठो और संभालो आंचल को,
प्रभु कलयुग में तो न आयेंगे..
त्रेतायुग में जब सीता का हरण हुआ,
सोने की लंका जला डाली..
आंखों में क्रोध की अग्नि लिए,
हनुमत ने सर्वस्व नाश थी कर डाली..
आग अभी भी जलती है,
जलती है और दहकती है,
पर मोमबत्तियों तक ही बस रहती है..
आंखें बस कुछ पलों के लिए ही,
शोक सभा में दिखावे को झुकती हैं..
सब व्यस्त बहुत हैं इस दुनिया में,
कुछ दिनों में ये भी भूल वो जायेंगे..
उठो और संभालो आंचल को,
प्रभु कलयुग में तो न आयेंगे..
द्रोपदी की लाज बचाने को,
द्वापर युग में मधुसूदन भी दौड़े आए थे..
दुःशासन का वध करके भीम ने,
उसके रक्त से पांचाली के केश धुलवाए थे..
रोष आज भी दिखता है,
माथा सबका तनता और ठनकता है..
हमें न्याय चाहिए जल्दी ही,
हर शख्स बस यही कहता है..
कन्या पूजन करने वाले,
सिर्फ ढकोसले ही कर पाएंगे..
उठो और संभालो आंचल को,
प्रभु कलयुग में तो न आयेंगे..
