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S N Sharma

Abstract Inspirational

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S N Sharma

Abstract Inspirational

अब मंजिल की चाह नहीं है

अब मंजिल की चाह नहीं है

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मन से ही रोगी मनुष्य है

और मन में ही दवा बसी है।


सबसे बड़ा ज्ञान का धन है

सबसे अच्छी दवा हंसी है।


यूं लड़ने को शस्त्र अनेकों

शस्त्र धैर्य सा कोई नहीं है।


और कई है गुण मानव के

पर सादगी ही श्रेष्ठ रही है।


पाठ पढ़े बरसों किताब के।

कुछ भूले कुछ याद रही है।


सबक सिखाया जो लोगों ने

जीवन भर को याद रही है।


साथ तेरा चोटों पर मरहम।

मेरे हमसफर चाह यही है।


रहे हाथ में हाथ तुम्हारा।

मंजिल की अब चाह नहीं है।



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