मिलना उसका
मिलना उसका


क्यूँ ढूंढ रहा दिल बीते पल क्या वक़्त कहीं ठहरा सा है
तू यहाँ भी है तू वहाँ भी था दृष्टि पटल यही कह रहा है
अभ्यास ना कर सुनने सब की न तू अपनी बताने आया है
जो छिन्न गया था उस पल तुमसे वो वक़्त लौटाने आया है
मुश्किल पड़ी हो चाहे कितनी हज़ार डटे मैदान में रहना है
अंतरात्मा भी झकझोर दें अपनी उफ्फ न तुमको कहना है
वही व्यक्तित्व सरल स्वभाव तार्किकता का गुण भी मौजूद है
शास्त्र क्षेत्रीयता अलौकिक तेज़ प्रतापी चेहरे पर उसके नूर है
वही है ये जो आत्मा से मिलते ही अपनापन झलकाता है
न दूर पुनः होना तुम प्रियवर तेरे बिन न मुझे कुछ भाता है
क्यूँ रोम रोम पुकारे तुझको लगे जन्मो से तुमसे मेरा नाता है
इतने बड़े जग में भला बेवजह कौन किसी से यूँ टकराता है