किताब
किताब
लगती थी कभी जब जिंदगी अकेली सी
आयी फिर किताब बनकर उसकी सहेली सी
ज्ञान की बातें सिखाती अनुशासन में हमें ले आती
नित नया अध्याय आता उत्साह से जीवन भर जाता
ग्रंथों वेदों और पुराणों की वाणी मिलकर बनती एक किताब
रामायण प्रेम की जननी महाभारत दर्शाती आपसी सदभाव
विभिन्न प्रकार की किताबें आती सीखना चाहे जो हज़ार
शिक्षित हो बनो चिकित्सक शिक्षक पायलट या चलाओ सरकार
भोर हुई जब आंखें खोल चाय का प्याला संग अख़बार
दोस्त की भाँति साथ निभाती चुटकुलों की किताबें हँसाती
कहानी कविताएँ ढेरों पाठ गद्य पद्य और विक्रम बेताल
पढ़ते पढ़ते जानें कब लिखने लगे हम अपने ही ज़ज्बात
ध्येय हमारा हो स्वतः ही पढ़-लिखकर के आगे बढ़ना
सत्य बोलना कर्म करना गीता ही है हमारे जीवन का सार।